< 2 शमूएल 19 >
1 योआब को इसकी सूचना इस प्रकार दी गई, “अपने राजा रो-रोकर अबशालोम के लिए विलाप कर रहे हैं.”
Someone told Joab that the king was crying and mourning because Absalom had died.
2 तब उस दिन विजय का हर्ष सारी सेना के लिए विलाप में बदल गया; क्योंकि सेना को यह बताया गया था, “महाराज अपने पुत्र के लिए रो रहे है.” उस दिन की जीत की खुशी गहरी उदासी में बदल गई थी.
All of David’s soldiers became sad. Instead of rejoicing about defeating [the soldiers who had fought with Absalom], they were sad because they heard that the king was mourning because Absalom [was dead].
3 फलस्वरूप, सैनिक नगर में चुपके-चुपके ऐसे प्रवेश कर रहे थे, मानो वे लज्जित होकर युद्ध में शत्रु को पीठ दिखाकर भाग आए हों.
The soldiers returned to the city quietly, like [SIM] soldiers do when they are ashamed because they ran away from battle.
4 राजा अपना मुखमंडल ढांप कर ऊंची आवाज में रो रहे थे, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र!”
The king covered his face [with his hands] and kept crying loudly, “O, my son Absalom! O, Absalom, my son! My son!”
5 तब योआब ने उस कमरे में जाकर राजा से कहा, “आज आपने अपने उन सभी अधिकारियों का मुख लज्जा से झुका दिया है, जिन्होंने आपकी और आपके पुत्र-पुत्रियों, पत्नियों और उपपत्नियों के जीवन की रक्षा की है.
Then Joab entered the room where the king was, and said to the king, “Today you have caused your soldiers to be ashamed! You have humiliated the men who saved your life and the lives of your sons and daughters and your ordinary wives and your slave wives!
6 आप उनसे तो प्रेम करते हैं, जिन्हें आपसे प्रेम नहीं, और उनसे घृणा करते हैं, जो आपसे प्रेम करते हैं. आज आपने यह साफ़ कर दिया है कि आपकी दृष्टि में न तो अधिकारियों का कोई महत्व है, न सैनिकों का. आज मुझे यह मालूम हो गया है कि आज यदि अबशालोम जीवित होता और हम सभी मृत, तो आपको अत्यंत हर्ष होता.
[It seems that] you love those who hate you and [that] you hate those who love you. You have caused it to be clear today that your commanders and your officers are not at all important to you. I think that if Absalom were still alive and we were all dead today, you would be happy.
7 अब ऐसा कीजिए: उठिए, बाहर आइए और अपने सैनिकों से सांत्वनापूर्ण शब्दों में बातें कीजिए, नहीं तो जीवित याहवेह की शपथ, यदि आप यह न करेंगे, एक भी सैनिक आज रात आपके साथ देखा न जाएगा. यह आपके लिए ऐसी किसी भी विपदा से कहीं अधिक सोचने लायक होगा, जो आपके बाल्यकाल से आज तक आप पर न आन पड़ी है.”
So, now go and thank your soldiers [for what they did]. Because I solemnly declare that if you do not do that, none of them will still be with you by tomorrow morning and that would be worse [for you] than all the disasters/troubles that you have experienced since you were a boy.”
8 तब राजा उठे और नगर द्वार पर जाकर बैठ गए, जब लोगों ने यह सुना, “सुनो, सुनो, राजा द्वार पर बैठे हुए है,” तो लोग राजा के निकट आने लगे. इस्राएली अपने-अपने घर भाग जा चुके थे.
So the king got up and went and sat near the city gate. And all the people were told, “Hey, the king is sitting at the gate!” So they all came and gathered around him. Meanwhile, all the Israeli troops [who had been with Absalom] had returned to their homes.
9 इस्राएल के सारे गोत्रों में इस समय इस विषय पर उग्र विवाद छिड़ा हुआ था, “राजा ही हमें हमारे शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करते आए हैं, वही हमें फिलिस्तीनियों से मुक्त करते आए हैं, अब वह अबशालोम के कारण देश छोड़कर भाग गए हैं.
Then all the people throughout the tribes of Israel started to quarrel among themselves. They said to each other, “King David rescued us from the people of Philistia and from our other enemies. But now he has fled from Absalom and left Israel!
10 यहां हमने अबशालोम का राजाभिषेक किया और वह युद्ध में मारा गया. तब अब राजा को वापस लाने के बारे में कुछ क्यों नहीं किया जा रहा?”
We appointed [MTY] Absalom to be our king, but he died in the battle [against David’s soldiers]. So (why does someone not try to bring King David back?/surely someone should try to bring King David back.)” [RHQ]
11 राजा दावीद ने पुरोहित सादोक और अबीयाथर के लिए यह संदेश भेजा: “आप यहूदिया के पुरनियों से इस विषय में विचार-विमर्श करें: ‘राजा को उसके आवास में लौटा लाने के विषय में आप सबसे पीछे क्यों हैं, जबकि सारे इस्राएल इस विषय में राजा तक अपने विचार भेज चुका है?
King David [found out what the people were saying. So he] sent the two priests, Zadok and Abiathar, to say to the leaders of Judah, “The king says that he has heard that all the Israeli people [want him to be king again]. And he says, ‘(Why should you be the last ones to bring me back to my palace?/It is not right that you be the last ones to bring me back to my palace.) [RHQ]
12 आप मेरे रिश्तेदार हैं, आप में और मुझे में लहू-मांस का संबंध है. तब आप ही राजा की पुनःस्थापना में पीछे क्यों हैं?’
You are my relatives; we have the same ancestor [IDM]. So (why should you be the last ones to bring me back?/you should certainly not be the last ones to bring me back.) [RHQ]’”
13 अमासा से कहिये, ‘क्या तुम मेरा लहू-मांस नहीं हो? यदि योआब के स्थान पर तुम आज से ही स्थायी रूप से मेरी सेना के सेनापति का पद ग्रहण न करो, तो मैं परमेश्वर के सामने दंड के योग्य रहूंगा.’”
And say to Amasa, “You are one of my relatives. I hope/desire that God strike me dead [IDM] if I do not appoint you to be, from now on, the commander of my army instead of Joab.”
14 इस बात ने यहूदिया की जनता का हृदय एक सूत्र में बांध दिया; तब उन्होंने राजा के लिए यह संदेश भेजा, “आप और आपके सारे सेवक यहां लौट आएं.”
[By sending that message to them, ] David convinced all the people of Judah [IDM] [that they should (be loyal to him/accept him as their king]). So they sent a message to the king, saying “We want you and all your officials to return here.”
15 तब राजा लौटकर यरदन नदी तक पहुंचे. तब यहूदियावासी गिलगाल नामक स्थान पर उनका स्वागत करते हुए प्रतीक्षा कर रहे थे, कि उन्हें यरदन नदी के पार ले आएं.
So the king [and his officials started back toward Jerusalem]. When they reached the Jordan [River], the people of Judah came there to Gilgal to meet the king, and to bring him across the river.
16 बहुरीम नामक स्थान से बिन्यामिन के एक वंशज, गेरा के पुत्र शिमेई यहूदिया के व्यक्तियों को लेकर शीघ्रतापूर्वक राजा दावीद से भेंटकरने आ गए.
Shimei, the man from the tribe of Benjamin, also came down quickly [to the river] with the people of Judah to meet King David.
17 उनके साथ बिन्यामिन वंश के हज़ार व्यक्ति भी थे. उसी समय शाऊल का गृह प्रबंधक ज़ीबा भी अपने पन्द्रह पुत्रों और बीस सेवकों के साथ, ढलान पर यरदन नदी की ओर दौड़ता हुआ राजा से भेंटकरने आया.
There were 1,000 men from the tribe of Benjamin who came with him. And Ziba, who had been the servant of Saul, also hurried down to the Jordan [River], bringing 20 of his servants with him. They all came to the king,
18 उन्होंने राजा के परिवार को नदी पार करने में सहायता दी, और उनकी सुविधाओं के लिए प्रयास करते रहे. राजा नदी पार करने पर ही थे, कि गेरा का पुत्र शिमेई आकर राजा के चरणों में गिर पड़ा.
and then they all [prepared to] take the king and all his family across the river, at the place where they could walk across it. They wanted to do whatever the king wanted them to do. As the king was about to cross the river, Shimei came to him and prostrated himself in front of the king.
19 उसने राजा से तेज आवाज में विनती की, “मेरे स्वामी, न तो मुझे दोषी ठहराएं और न ही मेरे उस गलत व्यवहार को याद रखें, जो मैंने मेरे स्वामी महाराज के येरूशलेम से जाने के अवसर में किया था. महाराज इसे अपने हृदय में न रखें.
He said to the king, “Your Majesty, please forgive me. Please do not keep thinking about the terrible thing that I did on the day that you left Jerusalem. Do not think about it any more.
20 आपके सेवक को यह पता है, कि मैंने यह पाप किया है. इसलिये यह देखिए, आज मैं ही सारे योसेफ़ वंश में से पहला हूं, जो महाराज, मेरे स्वामी से भेंटकरने आया हूं.”
Because I know that I have sinned. Look, I have come today, the first one from the northern tribes to come here to greet you today, Your Majesty.”
21 ज़ेरुइयाह के पुत्र अबीशाई ने इसके लिए सुझाव दिया, “क्या सही नहीं कि जो कुछ शिमेई ने किया है, उसके लिए उसे मृत्यु दंड दिया जाए? उसने याहवेह के अभिषिक्त को शाप दिया था.”
But Abishai, the son of Zeruiah, said, “He cursed the one that Yahweh appointed [MTY] to be the king! So (should he not be executed for doing that?/he certainly should be executed for doing that.)” [RHQ]
22 “तुम ज़ेरुइयाह के पुत्रो,” दावीद ने कहा, “क्या लेना देना है मेरा तुम्हारा? क्या कारण है तुम आज मेरे विपरीत ही जा रहे हो? क्या आज वह दिन है, जिसमें इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को प्राण-दंड दिया जाना सही होगा? क्या मुझे यह मालूम नहीं कि मैं इस समय इस्राएल का राजा हूं?”
But David said, “You sons of Zeruiah, what am I going to do with you? (OR, you are not the ones who should decide [what to do to him]). [It is as though] you have become my enemies today. I know that I am the one who has now become the king of Israel, [so I say that] certainly no one [RHQ] in Israel should be executed today.”
23 तब शिमेई से उन्मुख हो राजा ने कहा, “तुम्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा.” इसके लिए राजा ने उससे शपथ खाई.
Then the king said to Shimei, “I solemnly promise that I will not execute you.”
24 शाऊल का पुत्र मेफ़िबोशेथ भी राजा से भेंटकरने आया. जिस दिन से राजा ने पलायन किया था, उस दिन से राजा के सुरक्षित लौटने तक उसने पैरों का ध्यान न रखा था, न अपनी दाढ़ी का प्रसाधन किया था, और न ही उसने धुले हुए कपड़े पहने थे.
Then Miphibosheth, Saul’s grandson, came down [to the river] to greet the king. He had not washed his feet or trimmed his beard or washed his clothes, from the time that the king left Jerusalem until the day that he returned.
25 जब वह राजा से भेंटकरने येरूशलेम में आया, राजा ने उससे कहा, “मेफ़िबोशेथ, पलायन करते समय तुम मेरे साथ क्यों नहीं थे?”
When he arrived from Jerusalem to greet the king, the king said to him, “Mephibosheth, why did you not go with me?”
26 उसने उत्तर में कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, मेरे सेवक ने मेरे साथ छल किया. आपके सेवक ने उससे कह रखा था, ‘मैं अपने लिए गधे की काठी कसूंगा कि मैं उस पर चढ़कर राजा के निकट जा सकूं,’ क्योंकि मैं ठहरा अपंग.
He replied, “Your Majesty, [you know that] I am crippled. [When I heard that you were leaving Jerusalem, ] I said to my servant [Ziba], ‘Put a saddle on my donkey in order that I can ride on it and go with the king.’ But he deceived me [and left without me].
27 इसके अलावा उसने महाराज, मेरे स्वामी से आपके सेवक के विरुद्ध झूठा आरोप भी प्रसारित कर दी; मगर महाराज, मेरे स्वामी, आप परमेश्वर के स्वर्गदूत तुल्य हैं; आपको जो कुछ सही लगे, आप वही करें.
And he lied to you about me. But, Your Majesty, you are [as wise] as God’s angel. So do whatever seems right to you.
28 महाराज मेरे स्वामी के सामने, मेरे पिता का वंश मृतकों के समान छोटा था, फिर भी आपने अपने सेवक को उनमें स्थान दिया, जो आपके साथ भोजन करने के लिए चुने गए थे. महाराज से इससे अधिक अपेक्षा करने का मेरा अधिकार ही नहीं रह जाता.”
All of my grandfather’s family expected/deserved that we would be executed. But [you did not execute me; ] you allowed me to eat food with you at your table! So I certainly do not have [RHQ] the right to request you for anything more.”
29 राजा ने उससे कहा, “अब ज्यादा बोलने से क्या लाभ? मैंने यह निश्चय किया है कि तुम्हारे और ज़ीबा के बीच संपत्ति को बांट दिया जाएगा.”
The king replied, “You certainly do not need to say any more. I have decided that you and Ziba will divide [equally] the land [that belonged to your grandfather Saul].”
30 मेफ़िबोशेथ ने राजा से कहा, “आप उसे संपूर्ण संपत्ति ही ले लेने दें. मेरे लिए यही काफ़ी है कि महाराज, मेरे स्वामी सुरक्षित लौट आए हैं.”
Mephibosheth replied to the king, “Your Majesty, [I am content that] you have returned safely. So allow him to take all the land.”
31 रोगेलिम नामक स्थान से गिलआदवासी बारज़िल्लई भी आए हुए थे. वह राजा के साथ साथ यरदन नदी तक गए थे, कि उन्हें यरदन नदी पार उतार दें.
Barzillai, the man from [the] Gilead [region], had come down to the Jordan [River] from [his town of] Rogelim, to escort the king across the river.
32 बारज़िल्लई बहुत वृद्ध व्यक्ति थे, वह अस्सी वर्षीय थे. राजा के माहानाईम पड़ाव के अवसर पर उन्हीं ने राजा की सुरक्षा का प्रबंध किया था, क्योंकि वहां वह अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे.
Barzillai was a very old man, 80 years old. He was a very wealthy man, and he had provided food for the king [and his soldiers] while they were at Mahanaim.
33 राजा ने बारज़िल्लई से कहा, “आप मेरे साथ नदी पार कर चलिए. येरूशलेम में आप मेरे साथ रहेंगे, मैं आपको आश्रय दूंगा.”
The king said to Barzillai, “Come with me to Jerusalem, and I will take care of you.”
34 मगर बारज़िल्लई ने राजा को उत्तर दिया, “और कितने दिन बाकी हैं मेरे जीवन के, कि मैं महाराज के साथ येरूशलेम चलूं?
But Barzillai replied, “I certainly do not have [RHQ] many more years to live. So (why should I go with you to Jerusalem?/there is certainly no reason for me to go with you to Jerusalem.) [RHQ]
35 इस समय मेरी आयु अस्सी वर्ष की है. क्या मुझमें अब यह बोध रह गया है कि सुखद क्या है, और क्या नहीं? क्या आपके सेवक में अब भोजन और पेय से संबंधित स्वाद बोध शेष रह गया है? अथवा क्या में अब भी स्त्री-पुरुष गायक-वृन्द की प्रस्तुति सुनने में समर्थ रह गया हूं? तब क्या लाभ है कि आपका सेवक महाराज मेरे स्वामी पर अतिरिक्त बोझ बनकर रहे?
I am now 80 years old. I do not [RHQ] know what is enjoyable and what is not enjoyable. I cannot [RHQ] enjoy what I eat and what I drink. I cannot [RHQ] hear the voices of men and women as they sing. So (why should I be another burden to you?/I do not want to be another burden to you.) [RHQ]
36 आपका सेवक महाराज के साथ मात्र यरदन नदी पार ही करेगा, पर क्या आवश्यकता है कि महाराज प्रतिफल में यह पुरस्कार दें.
I will cross the Jordan [River] with you and go a little further, and that will be all the reward that I need [for helping you].
37 कृपा कर अपने सेवक को लौटने की अनुमति प्रदान करें, कि मेरा देहांत मेरे ही गृहनगर में, मेरी माता-पिता की कब्र के निकट ही हो. हां, यह किमहाम है, मेरा पुत्र, आपका सेवक. उसे ही आज्ञा दें कि वह महाराज मेरे स्वामी के साथ जाए, और आपकी उपयुक्त इच्छा पूर्ण करता रहे.”
Then please allow me to return to my home, because that is where I want to die, near my parents’ grave. But here is [my son] Chimham. Your Majesty, allow him to go with you [and serve you], and do for him whatever seems good to you!”
38 राजा ने सहमति प्रदान की: “किमहाम मेरे साथ अवश्य जाएगा, और मैं उसके लिए वही करूंगा, जो आपकी अभिलाषा है, साथ ही मैं आपके लिए भी वहीं करूंगा, जो मुझसे आपकी इच्छा है.”
The king replied, “Okay, he will cross [the river] with me, and I will do for him whatever seems good to you. And I will do for you whatever you want me to do.”
39 इसके बाद सभी यरदन नदी के पार चले गए, राजा ने भी नदी पार की. तब राजा ने बारज़िल्लई का चुंबन लेते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया. इसके बाद बारज़िल्लई अपने घर लौट गए.
Then King David and all the others crossed the Jordan [River]. He kissed Barzillai and [asked God to] bless him. Then Barzillai returned to his home.
40 राजा गिलगाल की ओर बढ़ते गए. किमहाम राजा के साथ था. राजा के साथ यहूदिया की सभी सेना और इस्राएल की आधी सेना थी.
[After they crossed the river, ] Chimham went with the king, and all the army of Judah and half the army of the other Israeli tribes escorted/accompanied the king to Gilgal.
41 तब इस्राएल के सभी व्यक्ति आकर राजा से कहने लगे, “ऐसा क्यों हुआ है कि हमारे भाई-बंधुओं, यहूदियावासियों ने चुपके-चुपके यरदन के उस पार जाकर, राजा और उनके परिवार को और उनके सारे साथियों को यहां ले आए है?”
Then all the soldiers from the other Israeli tribes came to the king and said, “(Why is it that our relatives, the men from Judah, took you away from us and wanted to be the only ones to escort you and your family across the river, along with all your men?/It is not right that our relatives, the men from Judah, took you away from us and wanted to be the only ones to escort you and your family across the river, along with all your men.) [RHQ] [Why did you not request us to do that]?” [RHQ]
42 यहूदिया के सभी निवासियों ने इस्राएल के निवासियों को उत्तर दिया, “इसलिये, कि राजा हमारे निकट संबंधी हैं. इस पर क्रुद्ध होने का क्या कारण है? क्या हमने अपने भोजन के लिए राजा की धनराशि में से खर्च किया है? अथवा क्या उन्होंने हमें उपहार में कुछ दिया है?”
The soldiers from Judah replied, “We did it because the king is from Judah. So (why are you angry about that?/you should not be angry about that.) [RHQ] The king has never paid for our food, and he has never given us any gifts.”
43 यह सुन इस्राएलियों ने यहूदियावासियों को उत्तर दिया, “राजा में हमारे दस अंश निहित है. तब दावीद पर हमारा अधिकार तुमसे अधिक होता ही है. तब तुमने हमें तुच्छ क्यों समझा? क्या राजा को दोबारा प्रतिष्ठित करने का प्रस्ताव सबसे पहले हमारी ओर से ही नहीं आया था?” इसमें यहूदियावासियों के वचन इस्राएलियों के उद्गारों से अधिक प्रभावी रहे.
The men of the other Israeli tribes replied, “[There are ten tribes in Israel, and only one in Judah. So] it is ten times more right for us to say that David [is our king] than it is for you to say that. So why are you despising us [RHQ]? We were certainly [RHQ] the first ones to talk about bringing David back [to Jerusalem to be our king again].” But the men of Judah spoke more harshly than the men from the other tribes of Israel did.