< מִשְׁלֵי 5 >

בְּ֭נִי לְחָכְמָתִ֣י הַקְשִׁ֑יבָה לִ֝תְבוּנָתִ֗י הַט־אָזְנֶֽךָ׃ 1
ऐ मेरे बेटे! मेरी हिकमत पर तवज्जुह कर, मेरे समझ पर कान लगा;
לִשְׁמֹ֥ר מְזִמּ֑וֹת וְ֝דַ֗עַת שְׂפָתֶ֥יךָ יִנְצֹֽרוּ׃ 2
ताकि तू तमीज़ को महफ़ूज़ रख्खें, और तेरे लब 'इल्म के निगहबान हों:
כִּ֤י נֹ֣פֶת תִּ֭טֹּפְנָה שִׂפְתֵ֣י זָרָ֑ה וְחָלָ֖ק מִשֶּׁ֣מֶן חִכָּֽהּ׃ 3
क्यूँकि बेगाना 'औरत के होटों से शहद टपकता है, और उसका मुँह तेल से ज़्यादा चिकना है;
וְֽ֭אַחֲרִיתָהּ מָרָ֣ה כַֽלַּעֲנָ֑ה חַ֝דָּ֗ה כְּחֶ֣רֶב פִּיּֽוֹת׃ 4
लेकिन उसका अन्जाम अज़दहे की तरह तल्ख़, और दो धारी तलवार की तरह तेज़ है।
רַ֭גְלֶיהָ יֹרְד֣וֹת מָ֑וֶת שְׁ֝א֗וֹל צְעָדֶ֥יהָ יִתְמֹֽכוּ׃ (Sheol h7585) 5
उसके पाँव मौत की तरफ़ जाते हैं, उसके क़दम पाताल तक पहुँचते हैं। (Sheol h7585)
אֹ֣רַח חַ֭יִּים פֶּן־תְּפַלֵּ֑ס נָע֥וּ מַ֝עְגְּלֹתֶ֗יהָ לֹ֣א תֵדָֽע׃ פ 6
इसलिए उसे ज़िन्दगी का हमवार रास्ता नहीं मिलता; उसकी राहें बेठिकाना हैं, पर वह बेख़बर है।
וְעַתָּ֣ה בָ֭נִים שִׁמְעוּ־לִ֑י וְאַל־תָּ֝ס֗וּרוּ מֵאִמְרֵי־פִֽי׃ 7
इसलिए ऐ मेरे बेटो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह की बातों से नाफ़रमान न हो।
הַרְחֵ֣ק מֵעָלֶ֣יהָ דַרְכֶּ֑ךָ וְאַל־תִּ֝קְרַ֗ב אֶל־פֶּ֥תַח בֵּיתָֽהּ׃ 8
उस 'औरत से अपनी राह दूर रख, और उसके घर के दरवाज़े के पास भी न जा;
פֶּן־תִּתֵּ֣ן לַאֲחֵרִ֣ים הוֹדֶ֑ךָ וּ֝שְׁנֹתֶ֗יךָ לְאַכְזָרִֽי׃ 9
ऐसा न हो कि तू अपनी आबरू किसी गै़र के, और अपनी उम्र बेरहम के हवाले करे।
פֶּֽן־יִשְׂבְּע֣וּ זָרִ֣ים כֹּחֶ֑ךָ וַ֝עֲצָבֶ֗יךָ בְּבֵ֣ית נָכְרִֽי׃ 10
ऐसा न हो कि बेगाने तेरी कु़व्वत से सेर हों, और तेरी कमाई किसी गै़र के घर जाए;
וְנָהַמְתָּ֥ בְאַחֲרִיתֶ֑ךָ בִּכְל֥וֹת בְּ֝שָׂרְךָ֗ וּשְׁאֵרֶֽךָ׃ 11
और जब तेरा गोश्त और तेरा जिस्म घुल जाये तो तू अपने अन्जाम पर नोहा करे;
וְֽאָמַרְתָּ֗ אֵ֭יךְ שָׂנֵ֣אתִי מוּסָ֑ר וְ֝תוֹכַ֗חַת נָאַ֥ץ לִבִּֽי׃ 12
और कहे, “मैंने तरबियत से कैसी 'अदावत रख्खी, और मेरे दिल ने मलामत को हक़ीर जाना।
וְֽלֹא־שָׁ֭מַעְתִּי בְּק֣וֹל מוֹרָ֑י וְ֝לִֽמְלַמְּדַ֗י לֹא־הִטִּ֥יתִי אָזְנִֽי׃ 13
न मैंने अपने उस्तादों का कहा माना, न अपने तरबियत करने वालों की सुनी।
כִּ֭מְעַט הָיִ֣יתִי בְכָל־רָ֑ע בְּת֖וֹךְ קָהָ֣ל וְעֵדָֽה׃ 14
मैं जमा'अत और मजलिस के बीच, क़रीबन सब बुराइयों में मुब्तिला हुआ।”
שְׁתֵה־מַ֥יִם מִבּוֹרֶ֑ךָ וְ֝נֹזְלִ֗ים מִתּ֥וֹךְ בְּאֵרֶֽךָ׃ 15
तू पानी अपने ही हौज़ से और बहता पानी अपने ही चश्मे से पीना
יָפ֣וּצוּ מַעְיְנֹתֶ֣יךָ ח֑וּצָה בָּ֝רְחֹב֗וֹת פַּלְגֵי־מָֽיִם׃ 16
क्या तेरे चश्मे बाहर बह जाएँ, और पानी की नदियाँ कूचों में?
יִֽהְיוּ־לְךָ֥ לְבַדֶּ֑ךָ וְאֵ֖ין לְזָרִ֣ים אִתָּֽךְ׃ 17
वह सिर्फ़ तेरे ही लिए हों, न तेरे साथ गै़रों के लिए भी।
יְהִֽי־מְקוֹרְךָ֥ בָר֑וּךְ וּ֝שְׂמַ֗ח מֵאֵ֥שֶׁת נְעוּרֶֽךָ׃ 18
तेरा सोता मुबारक हो और तू अपनी जवानी की बीवी के साथ ख़ुश रह।
אַיֶּ֥לֶת אֲהָבִ֗ים וְֽיַעֲלַ֫ת־חֵ֥ן דַּ֭דֶּיהָ יְרַוֻּ֣ךָ בְכָל־עֵ֑ת בְּ֝אַהֲבָתָ֗הּ תִּשְׁגֶּ֥ה תָמִֽיד׃ 19
प्यारी हिरनी और दिल फ़रेब गजाला की तरह उसकी छातियाँ तुझे हर वक़्त आसूदह करें और उसकी मुहब्बत तुझे हमेशा फ़रेफ्ता रखे।
וְלָ֤מָּה תִשְׁגֶּ֣ה בְנִ֣י בְזָרָ֑ה וּ֝תְחַבֵּ֗ק חֵ֣ק נָכְרִיָּֽה׃ 20
ऐ मेरे बेटे, तुझे बेगाना 'औरत क्यों फ़रेफ्ता करे और तू ग़ैर 'औरत से क्यों हम आग़ोश हो?
כִּ֤י נֹ֨כַח ׀ עֵינֵ֣י יְ֭הוָה דַּרְכֵי־אִ֑ישׁ וְֽכָל־מַעְגְּלֹתָ֥יו מְפַלֵּֽס׃ 21
क्यूँकि इंसान की राहें ख़ुदावन्द कीआँखों के सामने हैं और वही सब रास्तों को हमवार बनाता है।
עַֽווֹנוֹתָ֗יו יִלְכְּדֻנ֥וֹ אֶת־הָרָשָׁ֑ע וּבְחַבְלֵ֥י חַ֝טָּאת֗וֹ יִתָּמֵֽךְ׃ 22
शरीर को उसी की बदकारी पकड़ेगी, और वह अपने ही गुनाह की रस्सियों से जकड़ा जाएगा।
ה֗וּא יָ֭מוּת בְּאֵ֣ין מוּסָ֑ר וּבְרֹ֖ב אִוַּלְתּ֣וֹ יִשְׁגֶּֽה׃ פ 23
वह तरबियत न पाने की वजह से मर जायेगा और अपनी सख़्त बेवक़ूफ़ी की वजह से गुमराह हो जायेगा।

< מִשְׁלֵי 5 >