< אִיּוֹב 8 >

וַ֭יַּעַן בִּלְדַּ֥ד הַשּׁוּחִ֗י וַיֹאמַֽר׃ 1
तब बिलदद सूखी कहने लगा,
עַד־אָ֥ן תְּמַלֶּל־אֵ֑לֶּה וְר֥וּחַ כַּ֝בִּיר אִמְרֵי־פִֽיךָ׃ 2
तू कब तक ऐसे ही बकता रहेगा, और तेरे मुँह की बातें कब तक आँधी की तरह होंगी?
הַ֭אֵל יְעַוֵּ֣ת מִשְׁפָּ֑ט וְאִם־שַׁ֝דַּ֗י יְעַוֵּֽת־צֶֽדֶק׃ 3
क्या ख़ुदा बेइन्साफ़ी करता है? क्या क़ादिर — ए — मुतलक़ इन्साफ़ का खू़न करता है?
אִם־בָּנֶ֥יךָ חָֽטְאוּ־ל֑וֹ וַֽ֝יְשַׁלְּחֵ֗ם בְּיַד־פִּשְׁעָֽם׃ 4
अगर तेरे फ़र्ज़न्दों ने उसका गुनाह किया है, और उसने उन्हें उन ही की ख़ता के हवाले कर दिया।
אִם־אַ֭תָּה תְּשַׁחֵ֣ר אֶל־אֵ֑ל וְאֶל־שַׁ֝דַּ֗י תִּתְחַנָּֽן׃ 5
तोभी अगर तू ख़ुदा को खू़ब ढूँडता, और क़ादिर — ए — मुतलक़ के सामने मिन्नत करता,
אִם־זַ֥ךְ וְיָשָׁ֗ר אָ֥תָּה כִּי־עַ֭תָּה יָעִ֣יר עָלֶ֑יךָ וְ֝שִׁלַּ֗ם נְוַ֣ת צִדְקֶֽךָ׃ 6
तो अगर तू पाक दिल और रास्तबाज़ होता, तो वह ज़रूर अब तेरे लिए बेदार हो जाता, और तेरी रास्तबाज़ी के घर को बढ़ाता।
וְהָיָ֣ה רֵאשִׁיתְךָ֣ מִצְעָ֑ר וְ֝אַחֲרִיתְךָ֗ יִשְׂגֶּ֥ה מְאֹֽד׃ 7
और अगरचे तेरा आग़ाज़ छोटा सा था, तोभी तेरा अंजाम बहुत बड़ा होता
כִּֽי־שְׁאַל־נָ֭א לְדֹ֣ר רִישׁ֑וֹן וְ֝כוֹנֵ֗ן לְחֵ֣קֶר אֲבוֹתָֽם׃ 8
ज़रा पिछले ज़माने के लोंगों से पू छ और जो कुछ उनके बाप दादा ने तहक़ीक़ की है उस पर ध्यान कर।
כִּֽי־תְמ֣וֹל אֲ֭נַחְנוּ וְלֹ֣א נֵדָ֑ע כִּ֤י צֵ֖ל יָמֵ֣ינוּ עֲלֵי־אָֽרֶץ׃ 9
क्यूँकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते और हमारे दिन ज़मीन पर साये की तरह हैं।
הֲלֹא־הֵ֣ם י֭וֹרוּךָ יֹ֣אמְרוּ לָ֑ךְ וּ֝מִלִּבָּ֗ם יוֹצִ֥אוּ מִלִּֽים׃ 10
क्या वह तुझे न सिखाएँगे और न बताएँगे और अपने दिल की बातें नहीं करेंगे?
הֲיִֽגְאֶה־גֹּ֭מֶא בְּלֹ֣א בִצָּ֑ה יִשְׂגֶּה־אָ֥חוּ בְלִי־מָֽיִם׃ 11
क्या नागरमोंथा बग़ैर कीचड़ के उग सकता है क्या सरकंडों को बिना पानी के बढ़ा किया जा सकता है?
עֹדֶ֣נּוּ בְ֭אִבּוֹ לֹ֣א יִקָּטֵ֑ף וְלִפְנֵ֖י כָל־חָצִ֣יר יִיבָֽשׁ׃ 12
जब वह हरा ही है और काटा भी नहीं गया तोभी और पौदों से पहले सूख जाता है।
כֵּ֗ן אָ֭רְחוֹת כָּל־שֹׁ֣כְחֵי אֵ֑ל וְתִקְוַ֖ת חָנֵ֣ף תֹּאבֵֽד׃ 13
ऐसी ही उन सब की राहें हैं, जो ख़ुदा को भूल जाते हैं बे ख़ुदा आदमी की उम्मीद टूट जाएगी
אֲשֶׁר־יָק֥וֹט כִּסְל֑וֹ וּבֵ֥ית עַ֝כָּבִ֗ישׁ מִבְטַחֽוֹ׃ 14
उसका ऐतमा'द जाता रहेगा और उसका भरोसा मकड़ी का जाला है।
יִשָּׁעֵ֣ן עַל־בֵּ֭יתוֹ וְלֹ֣א יַעֲמֹ֑ד יַחֲזִ֥יק בּ֝֗וֹ וְלֹ֣א יָקֽוּם׃ 15
वह अपने घर पर टेक लगाएगा लेकिन वह खड़ा न रहेगा, वह उसे मज़बूती से थामेगा लेकिन वह क़ाईम न रहेगा।
רָטֹ֣ב ה֭וּא לִפְנֵי־שָׁ֑מֶשׁ וְעַ֥ל גַּ֝נָּת֗וֹ יֹֽנַקְתּ֥וֹ תֵצֵֽא׃ 16
वह धूप पाकर हरा भरा हो जाता है और उसकी डालियाँ उसी के बाग़ में फैलतीं हैं
עַל־גַּ֭ל שָֽׁרָשָׁ֣יו יְסֻבָּ֑כוּ בֵּ֖ית אֲבָנִ֣ים יֶחֱזֶֽה׃ 17
उसकी जड़ें ढेर में लिपटी हुई रहती हैं, वह पत्थर की जगह को देख लेता है।
אִם־יְבַלְּעֶ֥נּוּ מִמְּקוֹמ֑וֹ וְכִ֥חֶשׁ בּ֝֗וֹ לֹ֣א רְאִיתִֽיךָ׃ 18
अगर वह अपनी जगह से हलाक किया जाए तो वह उसका इन्कार करके कहने लगेंगी, कि मैंने तुझे देखा ही नहीं।
הֶן־ה֭וּא מְשׂ֣וֹשׂ דַּרְכּ֑וֹ וּ֝מֵעָפָ֗ר אַחֵ֥ר יִצְמָֽחוּ׃ 19
देख उसके रस्ते की ख़ुशी इतनी ही है, और मिटटी में से दूसरे उग आएगें।
הֶן־אֵ֭ל לֹ֣א יִמְאַס־תָּ֑ם וְלֹֽא־יַ֝חֲזִ֗יק בְּיַד־מְרֵעִֽים׃ 20
देख ख़ुदा कामिल आदमी को छोड़ न देगा, न वह बदकिरदारों को सम्भालेगा।
עַד־יְמַלֵּ֣ה שְׂח֣וֹק פִּ֑יךָ וּשְׂפָתֶ֥יךָ תְרוּעָֽה׃ 21
वह अब भी तेरे मुँह को हँसी से भर देगा और तेरे लबों की ललकार की आवाज़ से।
שֹׂנְאֶ֥יךָ יִלְבְּשׁוּ־בֹ֑שֶׁת וְאֹ֖הֶל רְשָׁעִ֣ים אֵינֶֽנּוּ׃ פ 22
तेरे नफ़रत करने वाले शर्म का जामा' पहनेंगे और शरीरों का ख़ेमा क़ाईम न रहेगा

< אִיּוֹב 8 >