< אִיּוֹב 26 >
וַיַּ֥עַן אִיּ֗וֹב וַיֹּאמַֽר׃ | 1 |
तब अय्यूब ने जवाब दिया,
מֶה־עָזַ֥רְתָּ לְלֹא־כֹ֑חַ ה֝וֹשַׁ֗עְתָּ זְר֣וֹעַ לֹא־עֹֽז׃ | 2 |
“जो बे ताक़त उसकी तूने कैसी मदद की; जिस बाज़ू में कु़व्वत न थी, उसको तू ने कैसा संभाला।
מַה־יָּ֭עַצְתָּ לְלֹ֣א חָכְמָ֑ה וְ֝תוּשִׁיָּ֗ה לָרֹ֥ב הוֹדָֽעְתָּ׃ | 3 |
नादान को तूने कैसी सलाह दी, और हक़ीक़ी पहचान ख़ूब ही बताई।
אֶת־מִ֭י הִגַּ֣דְתָּ מִלִּ֑ין וְנִשְׁמַת־מִ֝י יָצְאָ֥ה מִמֶּֽךָּ׃ | 4 |
तू ने जो बातें कहीं? इसलिए किस से और किसकी रूह तुझ में से हो कर निकली?”
הָרְפָאִ֥ים יְחוֹלָ֑לוּ מִתַּ֥חַת מַ֝֗יִם וְשֹׁכְנֵיהֶֽם׃ | 5 |
“मुर्दों की रूहें पानी और उसके रहने वालों के नीचे काँपती हैं।
עָר֣וֹם שְׁא֣וֹל נֶגְדּ֑וֹ וְאֵ֥ין כְּ֝ס֗וּת לָֽאֲבַדּֽוֹן׃ (Sheol ) | 6 |
पाताल उसके सामने खुला है, और जहन्नुम बेपर्दा है। (Sheol )
נֹטֶ֣ה צָפ֣וֹן עַל־תֹּ֑הוּ תֹּ֥לֶה אֶ֝֗רֶץ עַל־בְּלִי־מָֽה׃ | 7 |
वह शिमाल को फ़ज़ा में फैलाता है, और ज़मीन को ख़ला में लटकाता है।
צֹרֵֽר־מַ֥יִם בְּעָבָ֑יו וְלֹא־נִבְקַ֖ע עָנָ֣ן תַּחְתָּֽם׃ | 8 |
वह अपने पानी से भरे हुए बादलों पानी को बाँध देता और बादल उसके बोझ से फटता नहीं।
מְאַחֵ֥ז פְּנֵי־כִסֵּ֑ה פַּרְשֵׁ֖ז עָלָ֣יו עֲנָנֽוֹ׃ | 9 |
वह अपने तख़्त को ढांक लेता है और उसके ऊपर अपने बादल को तान देता है।
חֹֽק־חָ֭ג עַל־פְּנֵי־מָ֑יִם עַד־תַּכְלִ֖ית א֣וֹר עִם־חֹֽשֶׁךְ׃ | 10 |
उसने रोशनी और अंधेरे के मिलने की जगह तक, पानी की सतह पर हद बाँध दी है।
עַמּוּדֵ֣י שָׁמַ֣יִם יְרוֹפָ֑פוּ וְ֝יִתְמְה֗וּ מִגַּעֲרָתֽוֹ׃ | 11 |
आसमान के सुतून काँपते, और और झिड़की से हैरान होते हैं।
בְּ֭כֹחוֹ רָגַ֣ע הַיָּ֑ם וּ֝בִתְבוּנָת֗וֹ מָ֣חַץ רָֽהַב׃ | 12 |
वह अपनी क़ुदरत से समन्दर को तूफ़ानी करता, और अपने फ़हम से रहब को छेद देता है।
בְּ֭רוּחוֹ שָׁמַ֣יִם שִׁפְרָ֑ה חֹֽלֲלָ֥ה יָ֝ד֗וֹ נָחָ֥שׁ בָּרִֽיחַ׃ | 13 |
उसके दम से आसमान आरास्ता होता है, उसके हाथ ने तेज़रू साँप को छेदा है।
הֶן־אֵ֤לֶּה ׀ קְצ֬וֹת דְּרָכָ֗יו וּמַה־שֵּׁ֣מֶץ דָּ֭בָר נִשְׁמַע־בּ֑וֹ וְרַ֥עַם גְּ֝בוּרוֹתָ֗יו מִ֣י יִתְבּוֹנָֽן׃ ס | 14 |
देखो, यह तो उसकी राहों के सिर्फ़ किनारे हैं, और उसकी कैसी धीमी आवाज़ हम सुनते हैं। लेकिन कौन उसकी क़ुदरत की गरज़ को समझ सकता है?”