< יְשַׁעְיָהוּ 54 >
רָנִּ֥י עֲקָרָ֖ה לֹ֣א יָלָ֑דָה פִּצְחִ֨י רִנָּ֤ה וְצַהֲלִי֙ לֹא־חָ֔לָה כִּֽי־רַבִּ֧ים בְּֽנֵי־שׁוֹמֵמָ֛ה מִבְּנֵ֥י בְעוּלָ֖ה אָמַ֥ר יְהוָֽה׃ | 1 |
ऐ बाँझ, तू जो बे — औलाद थी नग़मा सराई कर, तू जिसने विलादत का दर्द बर्दाश्त नहीं किया, ख़ुशी से गा और ज़ोर से चिल्ला, क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बे कस छोड़ी हुई औलाद शौहर वाली की औलाद से ज़्यादा है।
הַרְחִ֣יבִי ׀ מְק֣וֹם אָהֳלֵ֗ךְ וִירִיע֧וֹת מִשְׁכְּנוֹתַ֛יִךְ יַטּ֖וּ אַל־תַּחְשֹׂ֑כִי הַאֲרִ֙יכִי֙ מֵֽיתָרַ֔יִךְ וִיתֵדֹתַ֖יִךְ חַזֵּֽקִי׃ | 2 |
अपनी ख़ेमागाह को वसी' कर दे, हाँ, अपने घरों के पर्दे फैला; दरेग़ न कर, अपनी डोरियाँ लम्बी और अपनी मेंख़ें मज़बूत कर।
כִּי־יָמִ֥ין וּשְׂמֹ֖אול תִּפְרֹ֑צִי וְזַרְעֵךְ֙ גּוֹיִ֣ם יִירָ֔שׁ וְעָרִ֥ים נְשַׁמּ֖וֹת יוֹשִֽׁיבוּ׃ | 3 |
इसलिए कि तू दहनी और बाँई तरफ़ बढ़ेगी और तेरी नस्ल क़ौमों की वारिस होगी और वीरान शहरों को बसाएगी।
אַל־תִּֽירְאִי֙ כִּי־לֹ֣א תֵב֔וֹשִׁי וְאַל־תִּכָּלְמִ֖י כִּ֣י לֹ֣א תַחְפִּ֑ירִי כִּ֣י בֹ֤שֶׁת עֲלוּמַ֙יִךְ֙ תִּשְׁכָּ֔חִי וְחֶרְפַּ֥ת אַלְמְנוּתַ֖יִךְ לֹ֥א תִזְכְּרִי־עֽוֹד׃ | 4 |
ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि तू फिर पशेमाँ न होगी; तू न घबरा, क्यूँकि तू फिर रूस्वा न होगी; और अपनी जवानी का नंग भूल जाएगी, और अपनी बेवगी की 'आर को फिर याद न करेगी।
כִּ֤י בֹעֲלַ֙יִךְ֙ עֹשַׂ֔יִךְ יְהוָ֥ה צְבָא֖וֹת שְׁמ֑וֹ וְגֹֽאֲלֵךְ֙ קְד֣וֹשׁ יִשְׂרָאֵ֔ל אֱלֹהֵ֥י כָל־הָאָ֖רֶץ יִקָּרֵֽא׃ | 5 |
क्यूँकि तेरा ख़ालिक़ तेरा शौहर है, उसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है; और तेरा फ़िदिया देनेवाला इस्राईल का क़ुददूस है, वह तमाम इस ज़मीन का ख़ुदा कहलाएगा।
כִּֽי־כְאִשָּׁ֧ה עֲזוּבָ֛ה וַעֲצ֥וּבַת ר֖וּחַ קְרָאָ֣ךְ יְהוָ֑ה וְאֵ֧שֶׁת נְעוּרִ֛ים כִּ֥י תִמָּאֵ֖ס אָמַ֥ר אֱלֹהָֽיִךְ׃ | 6 |
क्यूँकि तेरा ख़ुदा फ़रमाता है कि ख़ुदावन्द ने तुझ को मतरूका और दिल आज़ुर्दा बीवी की तरह; हाँ, जवानी की मतलूक़ा बीवी की तरह फिर बुलाया है।
בְּרֶ֥גַע קָטֹ֖ן עֲזַבְתִּ֑יךְ וּבְרַחֲמִ֥ים גְּדֹלִ֖ים אֲקַבְּצֵֽךְ׃ | 7 |
मैंने एक दम के लिए तुझे छोड़ दिया, लेकिन रहमत की फ़िरावानी से तुझे ले लूँगा।
בְּשֶׁ֣צֶף קֶ֗צֶף הִסְתַּ֨רְתִּי פָנַ֥י רֶ֙גַע֙ מִמֵּ֔ךְ וּבְחֶ֥סֶד עוֹלָ֖ם רִֽחַמְתִּ֑יךְ אָמַ֥ר גֹּאֲלֵ֖ךְ יְהוָֽה׃ ס | 8 |
ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला फ़रमाता है, कि क़हर की शिद्दत में मैंने एक दम के लिए तुझ से मुँह छिपाया, लेकिन अब मैं हमेशा शफ़क़त से तुझ पर रहम करूँगा।
כִּי־מֵ֥י נֹ֙חַ֙ זֹ֣את לִ֔י אֲשֶׁ֣ר נִשְׁבַּ֗עְתִּי מֵעֲבֹ֥ר מֵי־נֹ֛חַ ע֖וֹד עַל־הָאָ֑רֶץ כֵּ֥ן נִשְׁבַּ֛עְתִּי מִקְּצֹ֥ף עָלַ֖יִךְ וּמִגְּעָר־בָּֽךְ׃ | 9 |
क्यूँकि मेरे लिए ये तूफ़ान — ए — नूह का सा मु'आमिला है, कि जिस तरह मैंने क़सम खाई थी कि फिर ज़मीन पर नूह जैसा तूफ़ान कभी न आएगा, उसी तरह अब मैंने क़सम खाई है कि मैं तुझ से फिर कभी आज़ुर्दा न हूँगा और तुझ को न घुड़कूँगा।
כִּ֤י הֶֽהָרִים֙ יָמ֔וּשׁוּ וְהַגְּבָע֖וֹת תְּמוּטֶ֑נָה וְחַסְדִּ֞י מֵאִתֵּ֣ךְ לֹֽא־יָמ֗וּשׁ וּבְרִ֤ית שְׁלוֹמִי֙ לֹ֣א תָמ֔וּט אָמַ֥ר מְרַחֲמֵ֖ךְ יְהוָֽה׃ ס | 10 |
ख़ुदावन्द तुझ पर रहम करने वाला यूँ फ़रमाता है कि पहाड़ तो जाते रहें और टीले टल जाएँ लेकिन मेरी शफ़क़त कभी तुझ पर से जाती न रहेगी, और मेरा सुलह का 'अहद न टलेगा।
עֲנִיָּ֥ה סֹעֲרָ֖ה לֹ֣א נֻחָ֑מָה הִנֵּ֨ה אָנֹכִ֜י מַרְבִּ֤יץ בַּפּוּךְ֙ אֲבָנַ֔יִךְ וִיסַדְתִּ֖יךְ בַּסַּפִּירִֽים׃ | 11 |
“ऐ मुसीबतज़दा और तूफ़ान की मारी और तसल्ली से महरूम! देख, मैं तेरे पत्थरों को स्याह रेख्ता में लगाऊँगा और तेरी बुनियाद नीलम से डालूँगा।
וְשַׂמְתִּ֤י כַּֽדְכֹד֙ שִׁמְשֹׁתַ֔יִךְ וּשְׁעָרַ֖יִךְ לְאַבְנֵ֣י אֶקְדָּ֑ח וְכָל־גְּבוּלֵ֖ךְ לְאַבְנֵי־חֵֽפֶץ׃ | 12 |
मैं तेरे कुंगुरों को लालों, और तेरे फाटकों को शब चिराग़, और तेरी सारी फ़सील बेशक़ीमत पत्थरों से बनाऊँगा।
וְכָל־בָּנַ֖יִךְ לִמּוּדֵ֣י יְהוָ֑ה וְרַ֖ב שְׁל֥וֹם בָּנָֽיִךְ׃ | 13 |
और तेरे सब फ़र्ज़न्द ख़ुदावन्द से तालीम पाएँगे और तेरे फ़र्ज़न्दों की सलामती कामिल होगी।
בִּצְדָקָ֖ה תִּכּוֹנָ֑נִי רַחֲקִ֤י מֵעֹ֙שֶׁק֙ כִּֽי־לֹ֣א תִירָ֔אִי וּמִ֨מְּחִתָּ֔ה כִּ֥י לֹֽא־תִקְרַ֖ב אֵלָֽיִךְ׃ | 14 |
तू रास्तबाज़ी से पायदार हो जाएगी, तू ज़ुल्म से दूर रहेगी क्यूँकि तू बेख़ौफ़ होगी, और दहशत से दूर रहेगी क्यूँकि वह तेरे क़रीब न आएगी।
הֵ֣ן גּ֥וֹר יָג֛וּר אֶ֖פֶס מֵֽאוֹתִ֑י מִי־גָ֥ר אִתָּ֖ךְ עָלַ֥יִךְ יִפּֽוֹל׃ | 15 |
मुम्किन है कि वह कभी इकट्ठे हों, लेकिन मेरे हुक्म से नहीं, जो तेरे ख़िलाफ़ जमा' होंगे, वह तेरे ही वजह से गिरेंगे।
הִנֵּ֤ה אָֽנֹכִי֙ בָּרָ֣אתִי חָרָ֔שׁ נֹפֵ֙חַ֙ בְּאֵ֣שׁ פֶּחָ֔ם וּמוֹצִ֥יא כְלִ֖י לְמַעֲשֵׂ֑הוּ וְאָנֹכִ֛י בָּרָ֥אתִי מַשְׁחִ֖ית לְחַבֵּֽל׃ | 16 |
देख, मैंने लुहार को पैदा किया जो कोयलों की आग धौंकता और अपने काम के लिए हथियार निकालता है; और ग़ारतगरों को मैंने ही पैदा किया कि लूट मार करें।
כָּל־כְּלִ֞י יוּצַ֤ר עָלַ֙יִךְ֙ לֹ֣א יִצְלָ֔ח וְכָל־לָשׁ֛וֹן תָּֽקוּם־אִתָּ֥ךְ לַמִּשְׁפָּ֖ט תַּרְשִׁ֑יעִי זֹ֡את נַחֲלַת֩ עַבְדֵ֨י יְהוָ֧ה וְצִדְקָתָ֛ם מֵאִתִּ֖י נְאֻם־יְהוָֽה׃ ס | 17 |
कोई हथियार जो तेरे ख़िलाफ़ बनाया जाए काम न आएगा, और जो ज़बान 'अदालत में तुझ पर चलेगी तू उसे मुजरिम ठहराएगी। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ये मेरे बन्दों की मीरास है और उनकी रास्तबाज़ी मुझ से है।”