< 2 שְׁמוּאֵל 14 >
וַיֵּ֖דַע יוֹאָ֣ב בֶּן־צְרֻיָ֑ה כִּֽי־לֵ֥ב הַמֶּ֖לֶךְ עַל־אַבְשָׁלֽוֹם׃ | 1 |
ज़ेरुइयाह के पुत्र योआब ने यह भांप लिया कि राजा का हृदय अबशालोम के लिए लालायित है.
וַיִּשְׁלַ֤ח יוֹאָב֙ תְּק֔וֹעָה וַיִּקַּ֥ח מִשָּׁ֖ם אִשָּׁ֣ה חֲכָמָ֑ה וַיֹּ֣אמֶר אֵ֠לֶיהָ הִֽתְאַבְּלִי־נָ֞א וְלִבְשִׁי־נָ֣א בִגְדֵי־אֵ֗בֶל וְאַל־תָּס֙וּכִי֙ שֶׁ֔מֶן וְהָיִ֕ית כְּאִשָּׁ֗ה זֶ֚ה יָמִ֣ים רַבִּ֔ים מִתְאַבֶּ֖לֶת עַל־מֵֽת׃ | 2 |
योआब ने तकोआ नगर से एक विदुषी को बुलवाकर उसे ये निर्देश दिए, “विलाप-वस्त्र धारण कर कृपया आप एक विलाप करनेवाली का अभिनय कीजिए. आप किसी भी प्रकार का सौन्दर्य-प्रसाधन न कीजिए. आपके रोने का ढंग ऐसा हो मानो आप लंबे समय से किसी मृतक के लिए विलाप कर रही हों.
וּבָאת֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ וְדִבַּ֥רְתְּ אֵלָ֖יו כַּדָּבָ֣ר הַזֶּ֑ה וַיָּ֧שֶׂם יוֹאָ֛ב אֶת־הַדְּבָרִ֖ים בְּפִֽיהָ׃ | 3 |
तब आप राजा की उपस्थिति में जाकर इस प्रकार कहिए.” और योआब ने उस स्त्री को समझा दिया कि उसे वहां क्या-क्या कहना होगा.
וַ֠תֹּאמֶר הָאִשָּׁ֤ה הַתְּקֹעִית֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ וַתִּפֹּ֧ל עַל־אַפֶּ֛יהָ אַ֖רְצָה וַתִּשְׁתָּ֑חוּ וַתֹּ֖אמֶר הוֹשִׁ֥עָה הַמֶּֽלֶךְ׃ ס | 4 |
जब तकोआ निवासी वह स्त्री राजा की उपस्थिति में आई, उसने भूमि पर मुख के बल गिरकर सम्मानपूर्वक राजा का अभिवादन किया और राजा के सामने अपनी यह विनती की, “महाराज मेरी रक्षा कीजिए!”
וַיֹּֽאמֶר־לָ֥הּ הַמֶּ֖לֶךְ מַה־לָּ֑ךְ וַתֹּ֗אמֶר אֲבָ֛ל אִשָּֽׁה־אַלְמָנָ֥ה אָ֖נִי וַיָּ֥מָת אִישִֽׁי׃ | 5 |
राजा ने उससे प्रश्न किया, “क्या है तुम्हारी व्यथा?” उसने उत्तर दिया, “मैं एक अभागी विधवा हूं क्योंकि मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है.
וּלְשִׁפְחָֽתְךָ֙ שְׁנֵ֣י בָנִ֔ים וַיִּנָּצ֤וּ שְׁנֵיהֶם֙ בַּשָּׂדֶ֔ה וְאֵ֥ין מַצִּ֖יל בֵּֽינֵיהֶ֑ם וַיַּכּ֧וֹ הָאֶחָ֛ד אֶת־הָאֶחָ֖ד וַיָּ֥מֶת אֹתֽוֹ׃ | 6 |
आपकी सेविका के दो पुत्र थे. जब वे खेत में थे, उनमें विवाद फूट पड़ा. वहां कोई भी न था, जो उनके बीच हस्तक्षेप करे. एक ने ऐसा वार किया कि दूसरे की मृत्यु हो गई.
וְהִנֵּה֩ קָ֨מָה כָֽל־הַמִּשְׁפָּחָ֜ה עַל־שִׁפְחָתֶ֗ךָ וַיֹּֽאמְרוּ֙ תְּנִ֣י ׀ אֶת־מַכֵּ֣ה אָחִ֗יו וּנְמִתֵ֙הוּ֙ בְּנֶ֤פֶשׁ אָחִיו֙ אֲשֶׁ֣ר הָרָ֔ג וְנַשְׁמִ֖ידָה גַּ֣ם אֶת־הַיּוֹרֵ֑שׁ וְכִבּ֗וּ אֶת־גַּֽחַלְתִּי֙ אֲשֶׁ֣ר נִשְׁאָ֔רָה לְבִלְתִּ֧י שִׂים לְאִישִׁ֛י שֵׁ֥ם וּשְׁאֵרִ֖ית עַל־פְּנֵ֥י הָאֲדָמָֽה׃ פ | 7 |
अब सारे परिवार आपकी सेविका के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है. उनकी मांग है, ‘अपना वह पुत्र हमें सौंप दो, जिसने भाई की हत्या की है, कि हम उसके भाई की हत्या के लिए उसकी भी हत्या करे.’ यदि वे ऐसा करेंगे तो उत्तराधिकारी की संभावना ही समाप्त हो जाएगी. इससे तो वे उत्तराधिकारी ही समाप्त कर देंगे. इसमें तो वे मेरे शेष रह गए अंगार का ही शमन कर देंगे और तब पृथ्वी पर मेरे पति का न तो नाम रह जाएगा और न कोई उत्तराधिकारी.”
וַיֹּ֧אמֶר הַמֶּ֛לֶךְ אֶל־הָאִשָּׁ֖ה לְכִ֣י לְבֵיתֵ֑ךְ וַאֲנִ֖י אֲצַוֶּ֥ה עָלָֽיִךְ׃ | 8 |
यह सुन राजा ने उस स्त्री से कहा, “तुम अपने घर जाओ. इस विषय में मैं आदेश प्रसारित करूंगा.”
וַתֹּ֜אמֶר הָאִשָּׁ֤ה הַתְּקוֹעִית֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ עָלַ֞י אֲדֹנִ֥י הַמֶּ֛לֶךְ הֶעָוֹ֖ן וְעַל־בֵּ֣ית אָבִ֑י וְהַמֶּ֥לֶךְ וְכִסְא֖וֹ נָקִֽי׃ ס | 9 |
तकोआ निवासी उस स्त्री ने राजा से कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, इसका दोष मुझ पर और मेरे पिता के वंश पर हो. महाराज और महाराज का सिंहासन इस विषय में निर्दोष रहेंगे.”
וַיֹּ֖אמֶר הַמֶּ֑לֶךְ הַֽמְדַבֵּ֤ר אֵלַ֙יִךְ֙ וַֽהֲבֵאת֣וֹ אֵלַ֔י וְלֹֽא־יֹסִ֥יף ע֖וֹד לָגַ֥עַת בָּֽךְ׃ | 10 |
राजा ने आगे यह भी कहा, “यदि कोई भी इस विषय में आपत्ति उठाए तो उसे मेरे यहां भेज देना. वह फिर कभी तुम्हें सताएगा नहीं.”
וַתֹּאמֶר֩ יִזְכָּר־נָ֨א הַמֶּ֜לֶךְ אֶת־יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֗יךָ מֵהַרְבַּ֞ת גֹּאֵ֤ל הַדָּם֙ לְשַׁחֵ֔ת וְלֹ֥א יַשְׁמִ֖ידוּ אֶת־בְּנִ֑י וַיֹּ֙אמֶר֙ חַי־יְהוָ֔ה אִם־יִפֹּ֛ל מִשַּׂעֲרַ֥ת בְּנֵ֖ךְ אָֽרְצָה׃ | 11 |
उस स्त्री ने तब यह भी कहा, “कृपया महाराज, याहवेह अपने परमेश्वर से यह विनती करें कि अब बदला लेनेवाला किसी की हत्या न करे और मेरा पुत्र जीवित रहे.” राजा ने आश्वासन दिया, “जीवन्त याहवेह की शपथ, तुम्हारे पुत्र का एक बाल भी भूमि पर न गिरेगा.”
וַתֹּ֙אמֶר֙ הָֽאִשָּׁ֔ה תְּדַבֶּר־נָ֧א שִׁפְחָתְךָ֛ אֶל־אֲדֹנִ֥י הַמֶּ֖לֶךְ דָּבָ֑ר וַיֹּ֖אמֶר דַּבֵּֽרִי׃ ס | 12 |
इसके बाद उस स्त्री ने दावीद से यह कहा, “कृपया अपनी दासी को महाराज, मेरे स्वामी, एक और विनती प्रस्तुत करने की आज्ञा दें.” “कहो,” राजा ने कहा.
וַתֹּ֙אמֶר֙ הָֽאִשָּׁ֔ה וְלָ֧מָּה חָשַׁ֛בְתָּה כָּזֹ֖את עַל־עַ֣ם אֱלֹהִ֑ים וּמִדַּבֵּ֨ר הַמֶּ֜לֶךְ הַדָּבָ֤ר הַזֶּה֙ כְּאָשֵׁ֔ם לְבִלְתִּ֛י הָשִׁ֥יב הַמֶּ֖לֶךְ אֶֽת־נִדְּחֽוֹ׃ | 13 |
उसे स्त्री ने कहा, “क्या कारण है आपने परमेश्वर की प्रजा के लिए ऐसी युक्ति की है? आपने इस समय जो निर्णय दिया है, उसके द्वारा महाराज ने स्वयं अपने को ही दोषी घोषित कर दिया है, क्योंकि आपने अपने निकाले हुए को यहां नहीं लौटाया है.
כִּי־מ֣וֹת נָמ֔וּת וְכַמַּ֙יִם֙ הַנִּגָּרִ֣ים אַ֔רְצָה אֲשֶׁ֖ר לֹ֣א יֵאָסֵ֑פוּ וְלֹֽא־יִשָּׂ֤א אֱלֹהִים֙ נֶ֔פֶשׁ וְחָשַׁב֙ מַֽחֲשָׁב֔וֹת לְבִלְתִּ֛י יִדַּ֥ח מִמֶּ֖נּוּ נִדָּֽח׃ | 14 |
हम सभी की मृत्यु निश्चित है. हम सभी भूमि पर छलक चुके उस जल के समान हैं, जिसे दोबारा इकट्ठा करना संभव नहीं होता. मगर परमेश्वर जीवन नष्ट नहीं करते. वह ऐसी युक्ति करते हैं कि कोई भी निकाले हुए हमेशा उनकी उपस्थिति से दूर न रहे.
וְ֠עַתָּה אֲשֶׁר־בָּ֜אתִי לְדַבֵּ֨ר אֶל־הַמֶּ֤לֶךְ אֲדֹנִי֙ אֶת־הַדָּבָ֣ר הַזֶּ֔ה כִּ֥י יֵֽרְאֻ֖נִי הָעָ֑ם וַתֹּ֤אמֶר שִׁפְחָֽתְךָ֙ אֲדַבְּרָה־נָּ֣א אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ אוּלַ֛י יַעֲשֶׂ֥ה הַמֶּ֖לֶךְ אֶת־דְּבַ֥ר אֲמָתֽוֹ׃ | 15 |
“यह कहने के लिए मैं महाराज के सम्मुख इसलिये आई हूं कि, लोगों की सुनकर मुझे भय लग रहा है. आपकी सेविका ने विचार किया, ‘अब मुझे महाराज से यह कहना ही होगा. संभव है, महाराज अपनी सेविका की विनती पूरी करें.
כִּ֚י יִשְׁמַ֣ע הַמֶּ֔לֶךְ לְהַצִּ֥יל אֶת־אֲמָת֖וֹ מִכַּ֣ף הָאִ֑ישׁ לְהַשְׁמִ֨יד אֹתִ֤י וְאֶת־בְּנִי֙ יַ֔חַד מִֽנַּחֲלַ֖ת אֱלֹהִֽים׃ | 16 |
क्योंकि जब महाराज यह सुनेंगे, वही अपनी सेविका को उस व्यक्ति से सुरक्षा प्रदान करेंगे, जो मुझे और मेरे पुत्र को परमेश्वर के उत्तराधिकार से वंचित करने पर है.’
וַתֹּ֙אמֶר֙ שִׁפְחָ֣תְךָ֔ יִֽהְיֶה־נָּ֛א דְּבַר־אֲדֹנִ֥י הַמֶּ֖לֶךְ לִמְנוּחָ֑ה כִּ֣י ׀ כְּמַלְאַ֣ךְ הָאֱלֹהִ֗ים כֵּ֣ן אֲדֹנִ֤י הַמֶּ֙לֶךְ֙ לִשְׁמֹ֙עַ֙ הַטּ֣וֹב וְהָרָ֔ע וַֽיהוָ֥ה אֱלֹהֶ֖יךָ יְהִ֥י עִמָּֽךְ׃ פ | 17 |
“आपकी सेविका ने यह भी विचार किया, ‘महाराज, मेरे स्वामी का आदेश ही मेरे मन को शांति दे सकता है, क्योंकि महाराज, मेरे स्वामी परमेश्वर के सदृश ही उचित-अनुचित भांप लेते हैं. याहवेह, आपके परमेश्वर आपके साथ रहें.’”
וַיַּ֣עַן הַמֶּ֗לֶךְ וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־הָ֣אִשָּׁ֔ה אַל־נָ֨א תְכַחֲדִ֤י מִמֶּ֙נִּי֙ דָּבָ֔ר אֲשֶׁ֥ר אָנֹכִ֖י שֹׁאֵ֣ל אֹתָ֑ךְ וַתֹּ֙אמֶר֙ הָֽאִשָּׁ֔ה יְדַבֶּר־נָ֖א אֲדֹנִ֥י הַמֶּֽלֶךְ׃ | 18 |
यह सुन राजा ने उस स्त्री से कहा, “मुझसे कुछ न छिपाना; मैं तुमसे कुछ पूछने जा रहा हूं.” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “महाराज, मेरे स्वामी मुझसे प्रश्न करें.”
וַיֹּ֣אמֶר הַמֶּ֔לֶךְ הֲיַ֥ד יוֹאָ֛ב אִתָּ֖ךְ בְּכָל־זֹ֑את וַתַּ֣עַן הָאִשָּׁ֣ה וַתֹּ֡אמֶר חֵֽי־נַפְשְׁךָ֩ אֲדֹנִ֨י הַמֶּ֜לֶךְ אִם־אִ֣שׁ ׀ לְהֵמִ֣ין וּלְהַשְׂמִ֗יל מִכֹּ֤ל אֲשֶׁר־דִּבֶּר֙ אֲדֹנִ֣י הַמֶּ֔לֶךְ כִּֽי־עַבְדְּךָ֤ יוֹאָב֙ ה֣וּא צִוָּ֔נִי וְה֗וּא שָׂ֚ם בְּפִ֣י שִׁפְחָֽתְךָ֔ אֵ֥ת כָּל־הַדְּבָרִ֖ים הָאֵֽלֶּה׃ | 19 |
राजा ने पूछा, “इन सारी बातों में क्या तुम्हारे साथ योआब शामिल है?” आपके जीवन की शपथ, “महाराज मेरे स्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर निरे सत्य के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता. वह योआब ही थे, जिन्होंने मुझे यह सब करने का आदेश दिया था; यह सारे वक्तव्य आपकी सेविका को उन्हीं ने सुझाया था.
לְבַעֲב֤וּר סַבֵּב֙ אֶת־פְּנֵ֣י הַדָּבָ֔ר עָשָׂ֛ה עַבְדְּךָ֥ יוֹאָ֖ב אֶת־הַדָּבָ֣ר הַזֶּ֑ה וַאדֹנִ֣י חָכָ֗ם כְּחָכְמַת֙ מַלְאַ֣ךְ הָאֱלֹהִ֔ים לָדַ֖עַת אֶֽת־כָּל־אֲשֶׁ֥ר בָּאָֽרֶץ׃ ס | 20 |
आपके सेवक योआब ने यह सब इसलिये किया है, कि इस समय घटित हो रही घटनाओं की दिशा परिवर्तित की जा सके. मगर मेरे स्वामी में परमेश्वर के स्वर्गदूत के समान ऐसी बुद्धि है कि पृथ्वी के सारे विषयों को समझा जा सके.”
וַיֹּ֤אמֶר הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶל־יוֹאָ֔ב הִנֵּה־נָ֥א עָשִׂ֖יתִי אֶת־הַדָּבָ֣ר הַזֶּ֑ה וְלֵ֛ךְ הָשֵׁ֥ב אֶת־הַנַּ֖עַר אֶת־אַבְשָׁלֽוֹם׃ | 21 |
तब राजा ने योआब को आदेश दिया, “सुनो, मैंने तुम्हारा यह प्रस्ताव स्वीकार किया. जाओ, उस युवा अबशालोम को यहां ले आओ.”
וַיִּפֹּל֩ יוֹאָ֨ב אֶל־פָּנָ֥יו אַ֛רְצָה וַיִּשְׁתַּ֖חוּ וַיְבָ֣רֶךְ אֶת־הַמֶּ֑לֶךְ וַיֹּ֣אמֶר יוֹאָ֡ב הַיּוֹם֩ יָדַ֨ע עַבְדְּךָ֜ כִּי־מָצָ֨אתִי חֵ֤ן בְּעֵינֶ֙יךָ֙ אֲדֹנִ֣י הַמֶּ֔לֶךְ אֲשֶׁר־עָשָׂ֥ה הַמֶּ֖לֶךְ אֶת־דְּבַ֥ר עַבְדֶּֽךָ׃ | 22 |
योआब ने भूमि पर दंडवत होकर राजा का अभिवादन किया और उनसे यह प्रतिवेदन किया, “आज आपके सेवक को यह मालूम हो गया है, कि मुझ पर आपकी दया बनी है, क्योंकि महाराज, मेरे स्वामी ने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार किया है.”
וַיָּ֥קָם יוֹאָ֖ב וַיֵּ֣לֶךְ גְּשׁ֑וּרָה וַיָּבֵ֥א אֶת־אַבְשָׁל֖וֹם יְרוּשָׁלִָֽם׃ פ | 23 |
तब योआब गेशूर के लिए चले गए और अबशालोम को येरूशलेम ले आए.
וַיֹּ֤אמֶר הַמֶּ֙לֶךְ֙ יִסֹּ֣ב אֶל־בֵּית֔וֹ וּפָנַ֖י לֹ֣א יִרְאֶ֑ה וַיִּסֹּ֤ב אַבְשָׁלוֹם֙ אֶל־בֵּית֔וֹ וּפְנֵ֥י הַמֶּ֖לֶךְ לֹ֥א רָאָֽה׃ ס | 24 |
राजा ने आदेश दिया, “सही होगा कि उसे उसी के घर में रहने दिया जाए; वह मेरी उपस्थिति में न आए.” इसलिये अबशालोम अपने घर चला गया, और राजा का चेहरा न देखा.
וּכְאַבְשָׁל֗וֹם לֹא־הָיָ֧ה אִישׁ־יָפֶ֛ה בְּכָל־יִשְׂרָאֵ֖ל לְהַלֵּ֣ל מְאֹ֑ד מִכַּ֤ף רַגְלוֹ֙ וְעַ֣ד קָדְקֳד֔וֹ לֹא־הָ֥יָה ב֖וֹ מֽוּם׃ | 25 |
सारे इस्राएल में सुंदरता में ऐसा कोई भी न था जो अबशालोम के समान प्रशंसनीय हो. सिर से लेकर पैरों तक उसमें कहीं भी कोई दोष न था.
וּֽבְגַלְּחוֹ֮ אֶת־רֹאשׁוֹ֒ וְֽ֠הָיָה מִקֵּ֨ץ יָמִ֤ים ׀ לַיָּמִים֙ אֲשֶׁ֣ר יְגַלֵּ֔חַ כִּֽי־כָבֵ֥ד עָלָ֖יו וְגִלְּח֑וֹ וְשָׁקַל֙ אֶת־שְׂעַ֣ר רֹאשׁ֔וֹ מָאתַ֥יִם שְׁקָלִ֖ים בְּאֶ֥בֶן הַמֶּֽלֶךְ׃ | 26 |
प्रति वर्ष जब उसके केश काटे जाते थे; क्योंकि उसके सिर के लिए वे बहुत भारी सिद्ध होते थे, तब राजा के तुलामान के अनुसार इन केशों का भार 200 शकेल होता था.
וַיִּֽוָּלְד֤וּ לְאַבְשָׁלוֹם֙ שְׁלוֹשָׁ֣ה בָנִ֔ים וּבַ֥ת אַחַ֖ת וּשְׁמָ֣הּ תָּמָ֑ר הִ֣יא הָיְתָ֔ה אִשָּׁ֖ה יְפַ֥ת מַרְאֶֽה׃ פ | 27 |
अबशालोम के तीन पुत्र पैदा हुए और एक पुत्री, जिसका नाम था तामार. वह रूपवती स्त्री थी.
וַיֵּ֧שֶׁב אַבְשָׁל֛וֹם בִּירוּשָׁלִַ֖ם שְׁנָתַ֣יִם יָמִ֑ים וּפְנֵ֥י הַמֶּ֖לֶךְ לֹ֥א רָאָֽה׃ | 28 |
अबशालोम को येरूशलेम में रहते हुए राजा की उपस्थिति में गए बिना दो साल बीत गए.
וַיִּשְׁלַ֨ח אַבְשָׁל֜וֹם אֶל־יוֹאָ֗ב לִשְׁלֹ֤חַ אֹתוֹ֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ וְלֹ֥א אָבָ֖ה לָב֣וֹא אֵלָ֑יו וַיִּשְׁלַ֥ח עוֹד֙ שֵׁנִ֔ית וְלֹ֥א אָבָ֖ה לָבֽוֹא׃ | 29 |
तब अबशालोम ने योआब से विनती की कि उसे राजा की उपस्थिति में जाने दिया जाए, मगर योआब उससे भेंटकरने नहीं आए.
וַיֹּ֨אמֶר אֶל־עֲבָדָ֜יו רְאוּ֩ חֶלְקַ֨ת יוֹאָ֤ב אֶל־יָדִי֙ וְלוֹ־שָׁ֣ם שְׂעֹרִ֔ים לְכ֖וּ וְהַצִּית֣וּהָ בָאֵ֑שׁ וַיַּצִּ֜תוּ עַבְדֵ֧י אַבְשָׁל֛וֹם אֶת־הַחֶלְקָ֖ה בָּאֵֽשׁ׃ פ | 30 |
तब अबशालोम ने अपने सेवकों को आदेश दिया, “जाओ, योआब के खेत में आग लगा दो. यह देख लेना कि योआब का खेत मेरे खेत से लगा हुआ है और इसमें जौ की उपज खड़ी हुई है.” अबशालोम के सेवकों ने जाकर उस खेत में आग लगा दी.
וַיָּ֣קָם יוֹאָ֔ב וַיָּבֹ֥א אֶל־אַבְשָׁל֖וֹם הַבָּ֑יְתָה וַיֹּ֣אמֶר אֵלָ֔יו לָ֣מָּה הִצִּ֧יתוּ עֲבָדֶ֛ךָ אֶת־הַחֶלְקָ֥ה אֲשֶׁר־לִ֖י בָּאֵֽשׁ׃ | 31 |
इस पर योआब ने अबशालोम के घर पर जाकर उससे पूछा, “तुम्हारे सेवकों ने मेरे खेत में आग क्यों लगाई?”
וַיֹּ֣אמֶר אַבְשָׁל֣וֹם אֶל־יוֹאָ֡ב הִנֵּ֣ה שָׁלַ֣חְתִּי אֵלֶ֣יךָ ׀ לֵאמֹ֡ר בֹּ֣א הֵ֠נָּה וְאֶשְׁלְחָה֩ אֹתְךָ֨ אֶל־הַמֶּ֜לֶךְ לֵאמֹ֗ר לָ֤מָּה בָּ֙אתִי֙ מִגְּשׁ֔וּר ט֥וֹב לִ֖י עֹ֣ד אֲנִי־שָׁ֑ם וְעַתָּ֗ה אֶרְאֶה֙ פְּנֵ֣י הַמֶּ֔לֶךְ וְאִם־יֶשׁ־בִּ֥י עָוֹ֖ן וֶהֱמִתָֽנִי׃ | 32 |
अबशालोम ने योआब को उत्तर दिया, “याद है, मैंने आपसे विनती की थी, ‘आप यहां आएं, कि मैं आपको राजा की उपस्थिति में इस विनती के साथ भेजूं, “क्या लाभ हुआ मेरे गेशूर से यहां आने का? मेरे लिए अच्छा यही होता कि मैं वहीं ठहरा रहता!”’ अब तो मुझे राजा के दर्शन करने दीजिए. यदि मैं उनकी दृष्टि में अपराधी हूं, तो वही मुझे मृत्यु दंड दे दें.”
וַיָּבֹ֨א יוֹאָ֣ב אֶל־הַמֶּלֶךְ֮ וַיַּגֶּד־לוֹ֒ וַיִּקְרָ֤א אֶל־אַבְשָׁלוֹם֙ וַיָּבֹ֣א אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ וַיִּשְׁתַּ֨חוּ ל֧וֹ עַל־אַפָּ֛יו אַ֖רְצָה לִפְנֵ֣י הַמֶּ֑לֶךְ וַיִּשַּׁ֥ק הַמֶּ֖לֶךְ לְאַבְשָׁלֽוֹם׃ פ | 33 |
तब योआब ने जाकर राजा को यह सब बताया. राजा ने अबशालोम को बुलवाया. अबशालोम ने राजा की उपस्थिति में जाकर भूमि पर गिरकर उनको नमस्कार किया और राजा ने अबशालोम का चुंबन लिया.