< 1 Koenige 8 >

1 Damals versammelte Salomo die Vornehmsten Israels und alle Häupter der Stämme, die Fürsten der israelitischen Geschlechter, zum Könige Salomo nach Jerusalem, um die Lade mit dem Gesetze Jahwes aus der Stadt Davids, das ist Zion, hinaufzubringen.
तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुगों और क़बीलों के सब सरदारों को, जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के रईस थे, अपने पास येरूशलेम में जमा' किया ताकि वह दाऊद के शहर से, जो सिय्यून है, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ले आएँ।
2 Da versammelten sich zum Könige Salomo alle Männer Israels im Monat Ethanim, am Feste, das ist der siebente Monat.
इसलिए उस 'ईद में इस्राईल के सब लोग माह — ए — ऐतानीम में, जो सातवाँ महीना है, सुलेमान बादशाह के पास जमा' हुए।
3 Da kamen alle die Vornehmsten Israels herzu, und die Priester nahmen die Lade auf,
और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए, और काहिनों ने सन्दूक़ उठाया।
4 und brachten die Lade Jahwes hinauf samt dem Offenbarungszelt und allen den heiligen Geräten, die sich im Zelte befanden - die brachten die Priester und die Leviten hinauf.
और वह ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को, और ख़ेमा — ए — इजितमा'अ को, और उन सब मुक़द्दस बर्तनों को जो ख़ेमे के अन्दर थे ले आए; उनको काहिन और लावी लाए थे।
5 Der König Salomo aber und die ganze Gemeinde Israel, die sich bei ihm eingefunden hatte, standen mit ihm vor der Lade, indem sie Schafe und Rinder opferten, so viele, daß man sie nicht zählen noch berechnen konnte.
और सुलेमान बादशाह ने और उसके साथ इस्राईल की सारी जमा'अत ने, जो उसके पास जमा' थी, सन्दूक़ के सामने खड़े होकर इतनी भेड़ — बकरियाँ और बैल ज़बह किए कि उनको कसरत की वजह से उनकी गिनती या हिसाब न हो सका।
6 Und die Priester brachten die Lade mit dem Gesetze Jahwes an ihren Ort, in den Hinterraum des Gebäudes in das Allerheiligste unter die Flügel der Kerube.
और काहिन ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह पर, उस घर की इल्हामगाह में, या'नी पाकतरीन मकान में 'ऐन करूबियों के बाज़ुओं के नीचे ले आए।
7 Denn die Kerube hielten die Flügel ausgebreitet über den Ort der Lade, und so bedeckten die Kerube die Lade und ihre Stangen von oben her.
क्यूँकि करूबी अपने बाज़ुओं को सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे, और वह करूबी सन्दूक़ को और उसकी चोबों को ऊपर से ढाँके हुए थे।
8 Und die Stangen waren so lang, daß ihre Spitzen von dem Platze vor dem Hinterraum aus gesehen werden konnten; draußen aber waren sie nicht sichtbar. Und sie blieben daselbst bis auf den heutigen Tag.
और वह चोबें ऐसी लम्बी थीं के उन चोंबों के सिरे पाक मकान से इल्हामगाह के सामने दिखाई देते थे, लेकिन बाहर से नहीं दिखाई देते थे। और वह आज तक वहीं हैं।
9 In der Lade war nichts außer den beiden steinernen Tafeln, die Mose am Horeb hineingelegt hatte, den Tafeln des Bundes, den Jahwe mit den Israeliten schloß, als sie aus Ägypten zogen.
उस सन्दूक़ में कुछ न था सिवा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको वहाँ मूसा ने होरिब में रख दिया था, जिस वक़्त के ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जब वह मुल्क — ए — मिस्र से निकल आए, 'अहद बाँधा था।
10 Als aber die Priester das Heiligtum verließen, erfüllte die Wolke den Tempel Jahwes,
फिर ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से बाहर निकल आए, तो ख़ुदावन्द का घर अब्र से भर गया:
11 daß es den Priestern um der Wolke willen unmöglich war, hinzutreten, um Dienst zu thun, denn die Herrlichkeit Jahwes erfüllte den Tempel Jahwes.
इसलिए काहिन उस अब्र की वजह से ख़िदमत के लिए खड़े न हो सके, इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर उसके जलाल से भर गया था।
12 Damals sprach Salomo:
तब सुलेमान ने कहा कि “ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि वह गहरी तारीकी में रहेगा।
13 Nun habe ich ein Haus gebaut zur Wohnung für dich,
मैंने हक़ीक़त में एक घर तेरे रहने के लिए, बल्कि तेरी हमेशा की सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है।”
14 Und der König wandte sein Angesicht und begrüßte mit einem Segenswunsche die ganze Gemeinde Israel, während die ganze Gemeinde Israel stand.
और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की सारी जमा'अत को बरकत दी, और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही;
15 Und er sprach. Gepriesen sei Jahwe, der Gott Israels, der durch seinen Mund mit meinem Vater David geredet und durch seine Hand erfüllt hat, was er zusagte, indem er sprach:
और उसने कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो! जिसने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया, और उसे अपने हाथ से यह कह कर पूरा किया कि।
16 Seit der Zeit, da ich mein Volk Israel aus Ägypten herausführte, habe ich aus keinem der Stämme Israels eine Stadt erwählt, daß man einen Tempel erbaue, damit mein Name daselbst wäre. Dann aber habe ich Jerusalem erwählt, daß mein Name daselbst wäre, und habe David erwählt, daß er über mein Volk Israel Herrscher sein sollte.
“जिस दिन से मैं अपनी क़ौम इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया, मैंने इस्राईल के सब क़बीलों में से भी किसी शहर को नहीं चुना कि एक घर बनाया जाए, ताकि मेरा नाम वहाँ हो; लेकिन मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हो।
17 Und mein Vater David hatte zwar im Sinne, dem Namen Jahwes, des Gottes Israels, einen Tempel zu bauen;
और मेरे बाप दाऊद के दिल में था कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए।
18 aber Jahwe sprach zu meinem Vater David: Daß du dir vorgenommen hast, meinem Namen einen Tempel zu bauen, an diesem Entschluss hast du wohlgethan.
लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, 'चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था, तब तू ने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना;
19 Doch nicht du sollst den Tempel bauen, sondern dein Sohn, der aus deinen Lenden hervorgehen wird, der soll meinem Namen den Tempel bauen.
तोभी तू उस घर को न बनाना, बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वह मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।
20 Und Jahwe hat die Verheißung, die er gegeben, in Erfüllung gehen lassen. Denn ich trat auf an meines Vaters David Statt und bestieg den Thron Israels, wie Jahwe verheißen hat, und baute den Tempel für den Namen Jahwes, des Gottes Israels.-
और ख़ुदावन्द ने अपनी बात, जो उसने कही थी, क़ाईम की है; क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ, और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था, मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है।
21 Und ich richtete daselbst eine Stätte her für die Lade, in der sich das Bundesgesetz Jahwes befindet, des Bundes, den er mit unseren Vätern geschlossen hat, als er sie aus Ägypten herausführte.
और मैंने वहाँ एक जगह उस सन्दूक़ के लिए मुक़र्रर कर दी है, जिसमें ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने हमारे बाप — दादा से, जब वह उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, बाँधा था।”
22 Und Salomo trat vor den Altar Jahwes angesichts der ganzen Gemeinde Israel, breitete seine Hände aus gen Himmel
और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ फ़ैलाए
23 und sprach: Jahwe, du Gott Israels, es ist kein Gott, weder droben im Himmel, noch unten auf Erden, dir gleich, der du den Bund und die Gnade bewahrst deinen Knechten, die von ganzem Herzen vor dir wandeln,
और कहा, ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! तेरी तरह न तो ऊपर आसमान में, न नीचे ज़मीन पर कोई ख़ुदा है; तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते हैं, 'अहद और रहमत को निगाह रखता है।
24 der du deinem Knechte, meinem Vater David, gehalten hast, was du ihm verheißen hattest. Ja, du hattest es mit deinem Munde geredet und mit deiner Hand hast du es erfüllt, wie nunmehr zu ersehen ist.
तू ने अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ाईम रख्खी, जिसका तू ने उससे वा'दा किया था; तू ने अपने मुँह से फ़रमाया और अपने हाथ से उसे पूरा किया, जैसा आज के दिन है।
25 Nun denn, Jahwe, du Gott Israels, halte deinem Knechte, meinem Vater David, was du ihm verheißen hast, indem du sprachst: Es soll dir nie fehlen an einem Nachkommen vor mir, der da sitze auf dem Throne Israels, wenn nur deine Söhne auf ihren Weg Acht haben, daß sie vor mir wandeln, gleich wie du vor mir gewandelt hast.
इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा! तू अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उससे किया था कि 'तेरे आदमियों से मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने वाले की कमी न होगी; बशर्ते कि तेरी औलाद, जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरे सामने चलने के लिए, अपने रास्ते की एहतियात रखखे।
26 Und nun, du Gott Israels, laß deine Verheißung wahr werden, die du deinem Knechte, meinem Vater David, gegeben hast.
इसलिए अब ऐ इस्राईल के खुदा, तेरा वह क़ौल सच्चा साबित किया जाए, जो तू ने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद से किया।
27 Sollte in Wahrheit Gott auf Erden wohnen? Siehe, der Himmel und die höchsten Himmel können dich nicht fassen, geschweige denn dieser Tempel, den ich gebaut habe.
लेकिन क्या ख़ुदा हक़ीक़त में ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख, आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू समा नहीं सकता, तो यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया।
28 Aber wende dich zu dem Gebet und Flehen deines Knechtes, Jahwe, mein Gott, daß du hörest auf das Schreien und das Gebet, das dein Knecht heute vor dir betet;
तोभी, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा की दुआ और मुनाजात का लिहाज़ करके, उस फ़रियाद और दुआ को सुन ले जो तेरा बन्दा आज के दिन तेरे सामने करता है,
29 daß deine Augen bei Nacht und bei Tag offen stehen über diesen Tempel, über die Stätte, von der du verheißen hast: Mein Name soll daselbst sein; daß du hörest auf das Gebet, das dein Knecht an dieser Stätte beten wird.
ताकि तेरी आँखें इस घर की तरफ़, या'नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी ज़रिए' तू ने फ़रमाया कि 'मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा,' दिन और रात खुली रहें; ताकि तू उस दुआ को सुने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके तुझ से करेगा।
30 Und du wollest hören auf die flehentlichen Worte deines Knechts und deines Volkes Israel, die sie an dieser Stätte beten werden; ja, du wollest hören an der Stätte, da du thronest, im Himmel, und wenn du hörst, verzeihen!
और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को, जब वह इस जगह की तरफ रुख करके करें सुन लेना, बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और सुनकर मु'आफ़ कर देना।
31 Falls sich jemand wider seinen Nächsten versündigt, und man ihm einen Eid auferlegt, um ihn seine Aussage eidlich bekräftigen zu lassen, und er kommt und schwört vor deinem Altar in diesem Hause:
“अगर कोई शख़्स अपने पड़ौसी का गुनाह करे, और उसे क़सम खिलाने के लिए उसको हल्फ़ दिया जाए, और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए:
32 so wollest du hören im Himmel und eingreifen und deinen Knechten Recht schaffen, daß du den Schuldigen verdammst, indem du sein Thun auf sein Haupt zurückfallen lässest, den Unschuldigen aber gerecht sprichst, indem du ihm giebst nach seiner Gerechtigkeit.
तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ करना, और बदकार पर फ़तवा लगाकर उसके 'आमाल को उसी के सिर डालना, और सादिक़ को सच्चा ठहराकर उसकी सदाक़त के मुताबिक उसे बदला देना।
33 Wenn dein Volk Israel geschlagen wird und vor dem Feinde fliehen muß, weil sie sich an dir versündigt haben, und sie bekehren sich zu dir und bekennen deinen Namen und beten und flehen zu dir in diesem Hause:
जब तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए' अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाये और तेरे नाम का इकरार करके इस घर में तुझ से दुआ और मुनाजात करे;
34 so wollest du hören im Himmel und die Sünde deines Volkes Israel vergeben und sie zurückbringen auf den Boden, den du ihren Vätern verliehen hast.
तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ करना, और उनको इस मुल्क में जो तूने उनके बाप दादा को दिया फिर ले आना।
35 Wenn der Himmel verschlossen ist, und kein Regen fällt, weil sie sich an dir versündigt haben, und sie beten an dieser Stätte und bekennen deinen Namen und bekehren sich von ihrer Sünde, weil du sie demütigst:
“जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हो, आसमान बन्द हो जाए और बारिश न हो, और वह इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें और तेरे नाम का इक़रार करें, और अपने गुनाह से बाज़ आएँ जब तू उनको दुख दे;
36 so wollest du hören im Himmel und die Sünde deiner Knechte und deines Volkes Israel vergeben, wenn du ihnen den guten Weg weisest, auf dem sie wandeln sollen; und wollest Regen senden auf dein Land, daß du deinem Volke zum Erbbesitze verliehen hast.
तो तू आसमान पर से सुन कर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना, क्यूँकि तू उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लीम देता है जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है, और अपने मुल्क पर जिसे तू ने अपनी क़ौम को मीरास के लिए दिया है, पानी बरसाना।
37 Wenn Hungersnot im Lande sein sollte, wenn Pest, wenn Brand und Vergilben des Getreides, oder Heuschrecken und Ungeziefer, wenn sein Feind es bedrängt in einer seiner Ortschaften, kurz wenn irgendwelche Plage, irgendwelche Krankheit eintritt:
“अगर मुल्क में काल हो, अगर वबा हो, अगर बाद — ऐ — समूम या गेरूई या टिड्डी या कमला हो, अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनको घेर लें, ग़रज़ कैसी ही बला कैसा ही रोग हो;
38 geschieht dann irgendein Gebet oder Flehen von irgendeinem Menschen, von deinem ganzen Volk Israel, wenn ein jeglicher den Schlag in seinem Gewissen spürt und seine Hände nach diesem Hause ausbreitet:
तो जो दुआ और मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से ही, जिनमें से हर शख़्स अपने दिल का दुख जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए;
39 so wollest du hören im Himmel, der Stätte, da du thronest, und vergeben und schaffen, daß du einem jeglichen gebest, ganz wie er gewandelt hat, wie du sein Herz erkennst, - denn du allein kennst das Herz aller Menschenkinder! -
तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकुनतगाह है सुनकर मु'आफ़ कर देना, और ऐसा करना कि हर आदमी को, जिसके दिल को तू जानता है, उसी की सारे चाल चलन के मुताबिक़ बदला देना; क्यूँकि सिर्फ़ तू ही सब बनी — आदम के दिलों को जानता है;
40 auf daß sie dich fürchten allezeit, solange sie auf dem Boden leben, den du unseren Vätern verliehen hast.
ताकि जितनी मुद्दत तक वह उस मुल्क में जिसे तू ने हमारे बाप — दादा को दिया ज़िन्दा रहें, तेरा ख़ौफ़ माने।
41 Aber auch auf den Fremdling, der nicht zu deinem Volk Israel gehört, wenn er aus fernem Lande kommt um deines Namens willen,
'अब रहा वह परदेसी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है, वह जब दूर मुल्क से तेरे नाम की ख़ातिर आए,
42 - denn sie werden hören von deinem großen Namen, deiner starken Hand und deinem ausgereckten Arm - wenn er kommt und vor diesem Tempel betet,
क्यूँकि वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़वी हाथ और बुलन्द बाज़ू का हाल सुनेंगे इसलिए जब वह आए और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दुआ करे,
43 so wollest du hören im Himmel, der Stätte, da du thronest, und alles das thun, worum der Fremde dich anruft, damit alle Völker der Erde deinen Namen erkennen, daß sie dich ebenso fürchten, wie dein Volk Israel, und daß sie inne werden, daß dieser Tempel, den ich gebaut habe, nach deinem Namen genannt sei.
तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और जिस — जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रयाद करे तू उसके मुताबिक़ करना, ताकि ज़मीन की सब क़ौमें बनी इस्राईल की मानिन्द तेरे नाम को पहचाने मानें, और जान लें कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है।
44 Wenn dein Volk zum Kampfe gegen seinen Feind ausziehen wird, des Wegs, den du sie senden wirst, und sie zu Jahwe beten in der Richtung nach der Stadt hin, die du erwählt hast, und nach dem Tempel, den ich deinem Namen erbaut habe:
'अगर तेरे लोग चाहे किसी रास्ते से तू उनको भेजे, अपने दुश्मनों से लड़ने को निकलें, और वह ख़ुदावन्द से उस शहर की तरफ़ जिसे तू ने चुना है, और उस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके दुआ करें,
45 so wollest du ihr Gebet und Flehen im Himmel hören und ihnen Recht verschaffen.
तो तू आसमान पर से उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना।
46 Wenn sie sich an dir versündigen werden, - denn es giebt keinen Menschen, der nicht sündigte, - und du auf sie zürnst und sie dem Feinde preis giebst, daß ihre Bezwinger sie gefangen führen in das Land des Feindes, es sei nun fern oder nahe,
'अगर वह तेरा गुनाह करें क्यूँकि कोई ऐसा आदमी नहीं जो गुनाह न करता हो और तू उनसे नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे, ऐसा कि वह दुश्मन उनको ग़ुलाम करके अपने मुल्क में ले जाए, ख़्वाह वह दूर हो या नज़दीक,
47 und sie gegen in sich in dem Lande, wohin sie gefangen geführt sind, und bekehren sich und flehen zu dir im Land ihrer Bezwinger und sprechen: Wir haben gesündigt und verkehrt gehandelt, wir sind gottlos gewesen!
तोभी अगर वह उस मुल्क में जहाँ वह ग़ुलाम होकर पहुँचाए गए, होश में आयें और रुजू' लायें और अपने ग़ुलाम करने वालों के मुल्क में तुझसे मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया, हम टेढ़ी चाल चले, और हम ने शरारत की;
48 und bekehren sich also zu dir von ganzem Herzen und von ganzer Seele im Land ihrer Feinde, die sie weggeführt haben, und beten zu dir in der Richtung nach ihrem Lande hin, das du ihren Vätern verliehen hast, nach der Stadt, die du erwählt hast, und nach dem Hause, das ich deinem Namen erbaut habe:
इसलिए अगर वह अपने दुश्मनों के मुल्क में जो उनको क़ैद करके ले गए, अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़, जो तू ने उनके बाप — दादा को दिया, और इस शहर की तरफ़, जिसे तू ने चुन लिया, और इस घर की तरफ़, जो मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके तुझ से दुआ करें,
49 so wollest du ihr Gebet und Flehen hören im Himmel, der Stätte, da du thronest, und ihnen Recht verschaffen
तो तू आसमान पर से, जो तेरी सुकूनत गाह है, उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना,
50 und deinem Volke vergeben, was sie an dir gesündigt haben, und alle ihre Übertretungen, womit sie sich wider dich vergangen gaben, und wollest ihnen Barmherzigkeit widerfahren lassen von seiten derer, die sie gefangen halten, daß die sich ihrer erbarmen.
और अपनी क़ौम को, जिसने तेरा गुनाह किया, और उनकी सब ख़ताओं को, जो उनसे तेरे ख़िलाफ़ सरज़द हों, मु'आफ़ कर देना, और उनके ग़ुलाम करने वालों के आगे उन पर रहम करना ताकि वह उन पर रहम करें।
51 Denn sie sind dein Volk und dein Eigentum, das du aus Ägypten herausgeführt hast, mitten aus dem Eisen-Schmelzofen,
क्यूँकि वह तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं, जिसे तू मिस्र से लोहे के भट्टे के बीच में से निकाल लाया।
52 daß deine Augen offen stehen für das Flehen deines Knechts und das Flehen deines Volkes Israel, daß du sie erhörest in allem, worum sie dich anrufen.
सो तेरी आँखें तेरे बन्दा की मुनाजात और तेरी क़ौम इस्राईल की मुनाजात की तरफ़ खुली रहें, ताकि जब कभी वह तुझ से फ़रियाद करें, तू उनकी सुने;
53 Denn du hast sie dir ausgesondert zum Eigentum aus allen Völkern der Erde, wie du durch deinen Knecht Mose verheißen hast, als du unsere Väter aus Ägypten herausführtest, o Herr Jahwe!
क्यूँकि तू ने ज़मीन की सब क़ौमों में से उनको अलग किया कि वह तेरी मीरास हों, जैसा ऐ मालिक ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' फ़रमाया, जिस वक़्त तू हमारे बाप — दादा को मिस्र से निकाल लाया।”
54 Und als Salomo all' dieses Gebet und Flehen zu Jahwe ausgebetet hatte, erhob er sich von dem Platze vor dem Altare Jahwes, wo er mit gen Himmel ausgebreiteten Händen auf den Knieen gelegen hatte,
और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द से यह सब मुनाजात कर चुका, तो वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने से, जहाँ वह अपने हाथ आसमान की तरफ़ फैलाए हुए घुटने टेके था, उठा।
55 und trat hin und segnete die ganze Gemeinde Israel mit lauter Stimme, indem er sprach:
और खड़े होकर इस्राईल की सारी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से बरकत दी और कहा,
56 Gepriesen sei Jahwe, der seinem Volk Israel Ruhe verliehen, ganz wie er verheißen hat; keine einzige ist hinfällig geworden von all' den herrlichen Verheißungen, die er durch seinen Knecht Mose gegeben hat.
“ख़ुदावन्द, जिसने अपने सब वा'दों के मुताबिक़ अपनी क़ौम इस्राईल को आराम बख़्शा मुबारक हो; क्यूँकि जो सारा अच्छा वा'दा उसने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' किया, उसमें से एक बात भी ख़ाली न गई।
57 Es sei Jahwe, unser Gott, mit uns, wie er mit unseren Vätern gewesen ist. Er wolle uns nicht verlassen noch verstoßen,
ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमारे साथ रहे जैसे वह हमारे बाप — दादा के साथ रहा, और न हम को तर्क करे न छोड़े।
58 auf daß er unser Herz zu ihm neige, daß wir immerdar auf seinen Wegen wandeln und seine Gebote, Satzungen und Rechte beobachten, die er unseren Vätern anbefohlen hat.
ताकि वह हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल करे कि हम उसकी सब रास्तों पर चलें, और उसके फ़रमानों और क़ानून और अहकाम को, जो उसने हमारे बाप — दादा को दिए मानें।
59 Und diese meine Worte, die ich flehend vor Jahwe geredet habe, mögen Jahwe, unserem Gotte, bei Tag und bei Nacht nahe sein, daß er seinem Knecht und seinem Volk Israel nach eines jeglichen Tags Erfordernis Recht schaffe,
और यह मेरी बातें जिनको मैंने ख़ुदावन्द के सामने मुनाजात में पेश किया है, दिन और रात ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नज़दीक रहें, ताकि वह अपने बन्दा की दाद और अपनी क़ौम इस्राईल की दाद हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ दे;
60 damit alle Völker der Erde erkennen, daß Jahwe Gott ist, und keiner sonst.
जिससे ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके सिवा और कोई नहीं।
61 Und euer Herz sei ungeteilt gegenüber Jahwe, unserem Gotte, daß ihr nach seinen Satzungen wandelt und seine Gebote haltet, wie es jetzt der Fall ist.
इसलिए तुम्हारा दिल आज की तरह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के साथ उसके क़ानून पर चलने, और उसके हुक्मों को मानने के लिए कामिल रहे।”
62 Der König aber und ganz Israel mit ihm opferten Schlachtopfer vor Jahwe.
और बादशाह ने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द के सामने क़ुर्बानी पेश की।
63 Und zwar opferte Salomo als das Heilsopfer, das er Jahwe schlachtete, 22 000 Rinder und 120 000 Schafe. Also weihten sie den Tempel Jahwes ein, der König und alle Israeliten.
सुलेमान ने जो सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेशकीं उसमें उसने बाईस हज़ार बैल और एक लाख बीस हज़ार भेड़ें पेश कीं। ऐसे बादशाह ने और सब बनी — इस्राईल ने ख़ुदावन्द का घर मख़्सूस किया।
64 Jenes Tages weihte der König den mittleren Teil des Vorhofs, der vor dem Tempel Jahwes liegt, indem er die Brandopfer, die Speisopfer und die Fettstücke der Heilsopfer daselbst opferte. Denn der eherne Altar, der vor Jahwe stand, war zu klein, um die Brandopfer und Speisopfer und die Fettstücke der Heilopfer zu fassen.
उसी दिन बादशाह ने सहन के दर्मियानी हिस्से को जो ख़ुदावन्द के घर के सामने था मुक़द्दस किया, क्यूँकि उसने वहीं सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बीहों की चर्बी पेश की, इसलिए कि पीतल का मज़बह जो ख़ुदावन्द के सामने था, इतना छोटा था कि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बोहों की चर्बी के लिए गुन्जाइश न थी।
65 So beging Salomo zu jener Zeit das Fest und ganz Israel mit ihm, - eine gewaltige Versammlung, von da, wo es nach Hammath hineingeht, an bis zum Bach Ägyptens, - vor Jahwe, unserem Gotte, sieben Tage lang und sieben Tage, zusammen vierzehn Tage.
इसलिए सुलेमान ने और उसके साथ सारे इस्राईल, या'नी एक बड़ी जमा'अत, ने जो हमात के मदख़ल से लेकर मिस्र की नहर तक की हुदूद से आई थी, ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने सात दिन और फिर सात दिन और, या'नी चौदह दिन, 'ईद मनाई।
66 Am achten Tag aber entließ er das Volk. Und sie verabschiedeten sich vom König und gingen hin in ihre Heimat fröhlich und gutes Muts wegen all' des Guten, das Jahwe seinem Knechte David und seinem Volk Israel erwiesen hatte.
और आठवें दिन उसने उन लोगों को रुख़सत कर दिया। तब उन्होंने बादशाह को मुबारकबाद दी, और उस सारी नेकी के ज़रिए' जो ख़ुदावन्द ने अपने बन्दा दाऊद और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी, अपने डेरों को दिल में ख़ुश और ख़ुश होकर लौट गए।

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