< Ezekiel 18 >
1 The word of the LORD came to me again, saying,
१फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा:
2 What mean ye, that ye use this proverb concerning the land of Israel, saying, The fathers have eaten sour grapes, and the children's teeth are set on edge?
२“तुम लोग जो इस्राएल के देश के विषय में यह कहावत कहते हो, ‘खट्टे अंगूर खाए तो पिताओं ने, परन्तु दाँत खट्टे हुए बच्चों के।’ इसका क्या अर्थ है?
3 [As] I live, saith the Lord GOD, ye shall not have [occasion] any more to use this proverb in Israel.
३प्रभु यहोवा यह कहता है कि मेरे जीवन की शपथ, तुम को इस्राएल में फिर यह कहावत कहने का अवसर न मिलेगा।
4 Behold, all souls are mine; as the soul of the father, so also the soul of the son is mine: the soul that sinneth, it shall die.
४देखो, सभी के प्राण तो मेरे हैं; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है; दोनों मेरे ही हैं। इसलिए जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।
5 But if a man is just, and doeth that which is lawful and right,
५“जो कोई धर्मी हो, और न्याय और धर्म के काम करे,
6 [And] hath not eaten upon the mountains, neither hath lifted up his eyes to the idols of the house of Israel, neither hath defiled his neighbor's wife, neither hath come near to a polluted woman,
६और न तो पहाड़ों के पूजा स्थलों पर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतों की ओर आँखें उठाई हों; न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो, और न ऋतुमती के पास गया हो,
7 And hath not oppressed any, [but] hath restored to the debtor his pledge, hath stripped none by violence, hath given his bread to the hungry, and hath covered the naked with a garment:
७और न किसी पर अंधेर किया हो वरन् ऋणी को उसकी बन्धक फेर दी हो, न किसी को लूटा हो, वरन् भूखे को अपनी रोटी दी हो और नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
8 He [that] hath not given forth upon interest, neither hath taken any increase, [that] hath withdrawn his hand from iniquity, hath executed true judgment between man and man,
८न ब्याज पर रुपया दिया हो, न रुपये की बढ़ती ली हो, और अपना हाथ कुटिल काम से रोका हो, मनुष्य के बीच सच्चाई से न्याय किया हो,
9 Hath walked in my statutes, and hath kept my judgments, to deal truly; he [is] just, he shall surely live, saith the Lord GOD.
९और मेरी विधियों पर चलता और मेरे नियमों को मानता हुआ सच्चाई से काम किया हो, ऐसा मनुष्य धर्मी है, वह निश्चय जीवित रहेगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
10 If he begetteth a son [that is] a robber, a shedder of blood, and [that] doeth the like to [any] one of these [things],
१०“परन्तु यदि उसका पुत्र डाकू, हत्यारा, या ऊपर कहे हुए पापों में से किसी का करनेवाला हो,
11 And that doeth not any of those [duties], but even hath eaten upon the mountains, and defiled his neighbor's wife,
११और ऊपर कहे हुए उचित कामों का करनेवाला न हो, और पहाड़ों के पूजा स्थलों पर भोजन किया हो, पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
12 Hath oppressed the poor and needy, hath stripped by violence, hath not restored the pledge, and hath lifted up his eyes to the idols, hath committed abomination.
१२दीन दरिद्र पर अंधेर किया हो, औरों को लूटा हो, बन्धक न लौटाई हो, मूरतों की ओर आँख उठाई हो, घृणित काम किया हो,
13 Hath given forth upon interest, and hath taken increase: shall he then live? he shall not live: he hath done all these abominations; he shall surely die; his blood shall be upon him.
१३ब्याज पर रुपया दिया हो, और बढ़ती ली हो, तो क्या वह जीवित रहेगा? वह जीवित न रहेगा; इसलिए कि उसने ये सब घिनौने काम किए हैं वह निश्चय मरेगा और उसका खून उसी के सिर पड़ेगा।
14 Now lo, [if] he begetteth a son, that seeth all his father's sins which he hath done, and considereth, and doeth not such like,
१४“फिर यदि ऐसे मनुष्य के पुत्र हों और वह अपने पिता के ये सब पाप देखकर भय के मारे उनके समान न करता हो।
15 [That] hath not eaten upon the mountains, neither hath lifted up his eyes to the idols of the house of Israel, hath not defiled his neighbor's wife,
१५अर्थात् न तो पहाड़ों के पूजा स्थलों पर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतों की ओर आँख उठाई हो, न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
16 Neither hath oppressed any, hath not withheld the pledge, neither hath stripped by violence, [but] hath given his bread to the hungry, and hath covered the naked with a garment,
१६न किसी पर अंधेर किया हो, न कुछ बन्धक लिया हो, न किसी को लूटा हो, वरन् अपनी रोटी भूखे को दी हो, नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
17 [That] hath taken off his hand from the poor, [that] hath not received interest nor increase, hath executed my judgments, hath walked in my statutes; he shall not die for the iniquity of his father, he shall surely live.
१७दीन जन की हानि करने से हाथ रोका हो, ब्याज और बढ़ती न ली हो, मेरे नियमों को माना हो, और मेरी विधियों पर चला हो, तो वह अपने पिता के अधर्म के कारण न मरेगा, वरन् जीवित ही रहेगा।
18 [As for] his father, because he cruelly oppressed, stripped his brother by violence, and did [that] which [is] not good among his people, lo, even he shall die in his iniquity.
१८उसका पिता, जिसने अंधेर किया और लूटा, और अपने भाइयों के बीच अनुचित काम किया है, वही अपने अधर्म के कारण मर जाएगा।
19 Yet say ye, Why? doth not the son bear the iniquity of the father? When the son hath done that which is lawful and right, [and] hath kept all my statutes, and hath done them, he shall surely live.
१९तो भी तुम लोग कहते हो, क्यों? क्या पुत्र पिता के अधर्म का भार नहीं उठाता? जब पुत्र ने न्याय और धर्म के काम किए हों, और मेरी सब विधियों का पालन कर उन पर चला हो, तो वह जीवित ही रहेगा।
20 The soul that sinneth, it shall die. The son shall not bear the iniquity of the father, neither shall the father bear the iniquity of the son: the righteousness of the righteous shall be upon him, and the wickedness of the wicked shall be upon him.
२०जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का; धर्मी को अपने ही धार्मिकता का फल, और दुष्ट को अपनी ही दुष्टता का फल मिलेगा।
21 But if the wicked will turn from all his sins that he hath committed, and keep all my statutes, and do that which is lawful and right, he shall surely live, he shall not die.
२१परन्तु यदि दुष्ट जन अपने सब पापों से फिरकर, मेरी सब विधियों का पालन करे और न्याय और धर्म के काम करे, तो वह न मरेगा; वरन् जीवित ही रहेगा।
22 All his transgressions that he hath committed, they shall not be mentioned to him: in his righteousness that he hath done he shall live.
२२उसने जितने अपराध किए हों, उनमें से किसी का स्मरण उसके विरुद्ध न किया जाएगा; जो धार्मिकता का काम उसने किया हो, उसके कारण वह जीवित रहेगा।
23 Have I any pleasure at all that the wicked should die? saith the Lord GOD: [and] not that he should return from his ways, and live?
२३प्रभु यहोवा की यह वाणी है, क्या मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न होता हूँ? क्या मैं इससे प्रसन्न नहीं होता कि वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे?
24 But when the righteous turneth away from his righteousness, and committeth iniquity, [and] doeth according to all the abominations that the wicked [man] doeth, shall he live? All his righteousness that he hath done shall not be mentioned: in his trespass that he hath trespassed, and in his sin that he hath sinned, in them shall he die.
२४परन्तु जब धर्मी अपने धार्मिकता से फिरकर टेढ़े काम, वरन् दुष्ट के सब घृणित कामों के अनुसार करने लगे, तो क्या वह जीवित रहेगा? जितने धार्मिकता के काम उसने किए हों, उनमें से किसी का स्मरण न किया जाएगा। जो विश्वासघात और पाप उसने किया हो, उसके कारण वह मर जाएगा।
25 Yet ye say, The way of the LORD is not equal. Hear now, O house of Israel; Is not my way equal? are not your ways unequal?
२५“तो भी तुम लोग कहते हो, ‘प्रभु की गति एक सी नहीं।’ हे इस्राएल के घराने, देख, क्या मेरी गति एक सी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं है?
26 When a righteous [man] turneth away from his righteousness, and committeth iniquity, and dieth in them; for his iniquity that he hath done shall he die.
२६जब धर्मी अपने धार्मिकता से फिरकर, टेढ़े काम करने लगे, तो वह उनके कारण मरेगा, अर्थात् वह अपने टेढ़े काम ही के कारण मर जाएगा।
27 Again, when a wicked [man] turneth away from his wickedness that he hath committed, and doeth that which is lawful and right, he shall save his soul alive.
२७फिर जब दुष्ट अपने दुष्ट कामों से फिरकर, न्याय और धर्म के काम करने लगे, तो वह अपना प्राण बचाएगा।
28 Because he considereth and turneth away from all his transgressions that he hath committed, he shall surely live, he shall not die.
२८वह जो सोच विचार कर अपने सब अपराधों से फिरा, इस कारण न मरेगा, जीवित ही रहेगा।
29 Yet saith the house of Israel, The way of the LORD is not equal. O house of Israel, are not my ways equal? are not your ways unequal?
२९तो भी इस्राएल का घराना कहता है कि प्रभु की गति एक सी नहीं। हे इस्राएल के घराने, क्या मेरी गति एक सी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं?
30 Therefore I will judge you, O house of Israel, every one according to his ways, saith the Lord God. Repent, and turn [yourselves] from all your transgressions; so iniquity shall not be your ruin.
३०“प्रभु यहोवा की यह वाणी है, हे इस्राएल के घराने, मैं तुम में से हर एक मनुष्य का न्याय उसकी चाल चलन के अनुसार ही करूँगा। पश्चाताप करो और अपने सब अपराधों को छोड़ो, तभी तुम्हारा अधर्म तुम्हारे ठोकर खाने का कारण न होगा।
31 Cast away from you all your transgressions, by which ye have transgressed; and make you a new heart and a new spirit: for why will ye die, O house of Israel?
३१अपने सब अपराधों को जो तुम ने किए हैं, दूर करो; अपना मन और अपनी आत्मा बदल डालो! हे इस्राएल के घराने, तुम क्यों मरो?
32 For I have no pleasure in the death of him that dieth, saith the Lord GOD: wherefore turn [ye], and live.
३२क्योंकि, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, जो मरे, उसके मरने से मैं प्रसन्न नहीं होता, इसलिए पश्चाताप करो, तभी तुम जीवित रहोगे।”