< 1 Kings 8 >
1 Then Solomon assembled the elders of Israel, and all the heads of the tribes, the ancestral leaders of the children of Israel, to king Solomon in Jerusalem, to bring up the ark of the covenant of the LORD out of the City of David, which is Zion.
१तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरुषों को भी जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे, यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सिय्योन से ऊपर ले आएँ।
2 All the men of Israel assembled themselves to king Solomon at the feast, in the month Ethanim, which is the seventh month.
२अतः सब इस्राएली पुरुष एतानीम नामक सातवें महीने के पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए।
3 All the elders of Israel came, and the priests took up the ark.
३जब सब इस्राएली पुरनिये आए, तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया।
4 They brought up the ark of the LORD, and the Tent of Meeting, and all the holy vessels that were in the Tent; and the priests and the Levites brought them up.
४और यहोवा का सन्दूक, और मिलापवाले तम्बू, और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे, उन सभी को याजक और लेवीय लोग ऊपर ले गए।
5 King Solomon and all the congregation of Israel, who were assembled to him, were with him before the ark, sacrificing sheep and cattle, that could not be counted nor numbered for multitude.
५और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मण्डली, जो उसके पास इकट्ठी हुई थी, वे सब सन्दूक के सामने इतने भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी।
6 The priests brought in the ark of the covenant of the LORD to its place, into the inner sanctuary of the house, to the most holy place, under the wings of the cherubim.
६तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के पवित्रस्थान में, जो परमपवित्र स्थान है, पहुँचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया।
7 For the cherubim spread forth their wings over the place of the ark, and the cherubim covered the ark and its poles above.
७करूब सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढाँके थे।
8 The poles were so long that the ends of the poles were seen from the holy place before the inner sanctuary; but they were not seen outside. And there they are to this day.
८डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिरे उस पवित्रस्थान से जो पवित्रस्थान के सामने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वर्तमान हैं।
9 There was nothing in the ark except the two tablets of stone which Moses put there at Horeb, when the LORD made a covenant with the children of Israel, when they came out of the land of Egypt.
९सन्दूक में कुछ नहीं था, उन दो पटियाओं को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बाँधी थी।
10 It came to pass, when the priests had come out of the holy place, that the cloud filled the house of the LORD,
१०जब याजक पवित्रस्थान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया।
11 so that the priests could not stand to minister by reason of the cloud; for the glory of the LORD filled the house of the LORD.
११और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
12 Then Solomon said, "The LORD has said that he would dwell in the thick cloud.
१२तब सुलैमान कहने लगा, “यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूँगा।
13 I have surely built you a house of habitation, a place for you to dwell in forever."
१३सचमुच मैंने तेरे लिये एक वासस्थान, वरन् ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिसमें तू युगानुयुग बना रहे।”
14 The king turned his face about, and blessed all the assembly of Israel: and all the assembly of Israel stood.
१४तब राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुँह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही।
15 He said, "Blessed is the LORD, the God of Israel, who spoke with his mouth to David your father, and has with his hand fulfilled it, saying,
१५और उसने कहा, “धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा! जिसने अपने मुँह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथ से उसे पूरा किया है,
16 'Since the day that I brought my people Israel out of Egypt, I chose no city out of all the tribes of Israel to build a house, so that my name might be there; nor did I choose anyone to be a leader over my people Israel. But I have chosen Jerusalem, so that my name may be there, and I have chosen David to be over my people Israel.'
१६‘जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैंने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना, जिसमें मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैंने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो।’
17 "Now it was in the heart of David my father to build a house for the name of the LORD, the God of Israel.
१७मेरे पिता दाऊद की यह इच्छा तो थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए।
18 But the LORD said to David my father, 'Whereas it was in your heart to build a house for my name, you did well that it was in your heart.
१८परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, ‘यह जो तेरी इच्छा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी इच्छा करके तूने भला तो किया;
19 Nevertheless, you shall not build the house; but your son who shall come forth out of your body, he shall build the house for my name.'
१९तो भी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।’
20 The LORD has established his word that he spoke; for I have risen up in the place of David my father, and I sit on the throne of Israel, as the LORD promised, and have built the house for the name of the LORD, the God of Israel.
२०यह जो वचन यहोवा ने कहा था, उसे उसने पूरा भी किया है, और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है।
21 There I have set a place for the ark, in which is the covenant of the LORD, which he made with our fathers, when he brought them out of the land of Egypt."
२१और इसमें मैंने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है, जिसमें यहोवा की वह वाचा है, जो उसने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उनसे बाँधी थी।”
22 Solomon stood before the altar of the LORD in the presence of all the assembly of Israel, and spread forth his hands toward heaven. Now Solomon had made a bronze scaffold, eight feet and seven inches long, and eight feet and seven inches broad, and five feet and two inches high, and had set it in the midst of the court; and on it he stood, and kneeled down on his knees before all the assembly of Israel, and spread forth his hands toward heaven.
२२तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ, और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा!
23 And he said, "LORD, the God of Israel, there is no God like you, in heaven above, or on earth beneath; keeping covenant and loving kindness with your servants, who walk before you with all their heart;
२३हे इस्राएल के परमेश्वर! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृथ्वी पर कोई परमेश्वर है: तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता, और करुणा करता रहता है।
24 who have kept with your servant David my father that which you promised him. Yes, you spoke with your mouth, and have fulfilled it with your hand, as it is this day.
२४जो वचन तूने मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तूने पालन किया है, जैसा तूने अपने मुँह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा कि आज है।
25 Now therefore, may the LORD, the God of Israel, keep with your servant David my father that which you have promised him, saying, 'There shall not fail you a man in my sight to sit on the throne of Israel, if only your children take heed to their way, to walk before me as you have walked before me.'
२५इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! इस वचन को भी पूरा कर, जो तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, ‘तेरे कुल में, मेरे सामने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी ही चौकसी करें।’
26 "Now therefore, LORD, God of Israel, please let your word be verified, which you spoke to your servant David my father.
२६इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिद्ध कर।
27 But will God in very deed dwell on the earth? Look, heaven and the heaven of heavens can't contain you; how much less this house that I have built.
२७“क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में कैसे समाएगा।
28 Yet have respect for the prayer of your servant, and for his petition, LORD my God, to listen to the cry and to the prayer which your servant prays before you this day;
२८तो भी हे मेरे परमेश्वर यहोवा! अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन! जो मैं आज तेरे सामने कर रहा हूँ;
29 that your eyes may be open toward this house night and day, even toward the place of which you have said, 'My name shall be there;' to listen to the prayer which your servant shall pray toward this place.
२९कि तेरी आँख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तूने कहा है, ‘मेरा नाम वहाँ रहेगा,’ रात दिन खुली रहें और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।
30 Listen to the petition of your servant, and of your people Israel, when they shall pray toward this place. Yes, hear in heaven, your dwelling place; and when you hear, forgive.
३०और तू अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरन् स्वर्ग में से जो तेरा निवास-स्थान है सुन लेना, और सुनकर क्षमा करना।
31 "If a man sins against his neighbor, and an oath is laid on him to cause him to swear, and he comes and swear before your altar in this house;
३१“जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के सामने शपथ खाए,
32 then hear in heaven, and do, and judge your servants, condemning the wicked, to bring his way on his own head, and justifying the righteous, to give him according to his righteousness.
३२तब तू स्वर्ग में सुनकर, अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निर्दोष को निर्दोष ठहराकर, उसके धार्मिकता के अनुसार उसको फल देना।
33 "When your people Israel are struck down before the enemy, because they have sinned against you; if they turn again to you, and confess your name, and pray and make petition to you in this house:
३३फिर जब तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे,
34 then hear in heaven, and forgive the sin of your people Israel, and bring them again to the land which you gave to their fathers.
३४तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना: और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था।
35 "When the sky is shut up, and there is no rain, because they have sinned against you; if they pray toward this place, and confess your name, and turn from their sin, when you punish them:
३५“जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दुःख देता है, और अपने पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना,
36 then hear in heaven, and forgive the sin of your servants, and of your people Israel, when you teach them the good way in which they should walk; and send rain on your land, which you have given to your people for an inheritance.
३६और अपने दासों, अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिए अपने इस देश पर, जो तूने अपनी प्रजा का भागकर दिया है, पानी बरसा देना।
37 "If there is famine in the land, if there is pestilence, if there is blight, mildew, locust or caterpillar; if their enemy besieges them in the land of their gates; whatever plague, whatever sickness there is;
३७“जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरूई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति या रोग क्यों न हों,
38 whatever prayer and petition is made by any man, or by all your people Israel, who shall each know the plague of his own heart, and spread forth his hands toward this house:
३८तब यदि कोई मनुष्य या तेरी प्रजा इस्राएल अपने-अपने मन का दुःख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए;
39 then hear in heaven, your dwelling place, and forgive, and do, and render to every man according to all his ways, whose heart you know; (for you, even you only, know the hearts of all the children of humankind; )
३९तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुनकर क्षमा करना, और ऐसा करना, कि एक-एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना: तू ही तो सब मनुष्यों के मन के भेदों का जाननेवाला है।
40 that they may fear you all the days that they live in the land which you gave to our fathers.
४०तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें।
41 "Moreover concerning the foreigner, who is not of your people Israel, when he shall come out of a far country for your name's sake
४१“फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए,
42 (for they shall hear of your great name, and of your mighty hand, and of your outstretched arm); when he shall come and pray toward this house;
४२वह तो तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिए जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करे,
43 then hear in heaven, your dwelling place, and do according to all that the foreigner calls to you for; that all the peoples of the earth may know your name, and fear you, as do your people Israel, and that they may know that this house which I have built is called by your name.
४३तब तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैंने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।
44 "If your people go out to battle against their enemy, by whatever way you shall send them, and they pray to the LORD toward the city which you have chosen, and toward the house which I have built for your name;
४४“जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे, वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें,
45 then hear in heaven their prayer and their petition, and maintain their cause.
४५तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय
46 If they sin against you (for there is no man who doesn't sin), and you are angry with them, and deliver them to the enemy, so that they carry them away captive to the land of the enemy, far off or near;
४६“निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है: यदि ये भी तेरे विरुद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्दी बनाकर अपने देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएँ,
47 yet if they shall repent in the land where they are carried captive, and repent and make petition to you in the land of those who carried them captive, saying, 'We have sinned, and have done perversely; we have dealt wickedly;'
४७और यदि वे बँधुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्दी बनानेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, ‘हमने पाप किया, और कुटिलता और दुष्टता की है;’
48 if they return to you with all their heart and with all their soul in the land of their enemies, who carried them captive, and pray to you toward their land, which you gave to their fathers, the city which you have chosen, and the house which I have built for your name:
४८और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्दी करके ले गए हों, अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्थना करें,
49 then hear their prayer and their petition in heaven, your dwelling place, and maintain their cause;
४९तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना,
50 and forgive your people who have sinned against you, and all their transgressions in which they have transgressed against you; and give them compassion before those who carried them captive, that they may have compassion on them
५०और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे, सब को क्षमा करके, उनके बन्दी करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें।
51 (for they are your people, and your inheritance, which you brought out of Egypt, from the midst of the iron furnace);
५१क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है।
52 that your eyes and your ears may be open to the petition of your servant, and to the petition of your people Israel, to listen to them whenever they cry to you.
५२इसलिए तेरी आँखें तेरे दास की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब-तब तू उनकी सुन ले;
53 For you separated them from among all the peoples of the earth, to be your inheritance, as you spoke by Moses your servant, when you brought our fathers out of Egypt, Lord GOD."
५३क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार, जो तूने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था, तूने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है।”
54 It was so, that when Solomon had made an end of praying all this prayer and petition to the LORD, he arose from before the altar of the LORD, from kneeling on his knees with his hands spread forth toward heaven.
५४जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था, यहोवा की वेदी के सामने से उठा,
55 He stood, and blessed all the assembly of Israel with a loud voice, saying,
५५और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊँचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया,
56 "Blessed be the LORD, who has given rest to his people Israel, according to all that he promised. There has not failed one word of all his good promise, which he promised by Moses his servant.
५६“धन्य है यहोवा, जिसने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं, उनमें से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।
57 May the LORD our God be with us, as he was with our fathers. Let him not leave us, nor forsake us;
५७हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हमको त्याग न दे और न हमको छोड़ दे।
58 that he may incline our hearts to him, to walk in all his ways, and to keep his commandments, and his statutes, and his ordinances, which he commanded our fathers.
५८वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें, और उसकी आज्ञाएँ और विधियाँ और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था, नित माना करें।
59 Let these my words, with which I have made petition before the LORD, be near to the LORD our God day and night, that he may maintain the cause of his servant, and the cause of his people Israel, as every day shall require;
५९और मेरी ये बातें जिनकी मैंने यहोवा के सामने विनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसी प्रतिदिन आवश्यकता हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे,
60 that all the peoples of the earth may know that the LORD, he is God. There is no other.
६०और इससे पृथ्वी की सब जातियाँ यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं।
61 "Let your heart therefore be perfect with the LORD our God, to walk in his statutes, and to keep his commandments, as at this day."
६१तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज के समान उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते रहो।”
62 The king, and all Israel with him, offered sacrifice before the LORD.
६२तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा।
63 Solomon offered for the sacrifice of peace offerings, which he offered to the LORD, two and twenty thousand head of cattle, and one hundred twenty thousand sheep. So the king and all the children of Israel dedicated the house of the LORD.
६३और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, वे बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
64 The same day the king made the middle of the court holy that was before the house of the LORD; for there he offered the burnt offering, and the meal offering, and the fat of the peace offerings, because the bronze altar that was before the LORD was too little to receive the burnt offering, and the meal offering, and the fat of the peace offerings.
६४उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के मध्य भी एक स्थान पवित्र किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के सामने थी, वह उनके लिये छोटी थी।
65 So Solomon held the feast at that time, and all Israel with him, a great assembly, from Lebo Hamath to the Wadi of Egypt, before the LORD our God in the house which he built, eating and drinking and rejoicing before the LORD our God, seven days and seven days; fourteen days.
६५अतः सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात के प्रवेश-द्वार से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इकट्ठी हुई थी, दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने पर्व को माना।
66 And on the eighth day he sent the people away; and they blessed the king, and went to their tents joyful and glad of heart for all the goodness that the LORD had shown to David his servant, and to Israel his people.
६६फिर आठवें दिन उसने प्रजा के लोगों को विदा किया। और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने-अपने डेरे को चले गए।