< Romans 11 >

1 Then I ask, Did God cast off his people? No indeed. For I also am an Israelite, a son of Abraham, a member of the tribe of Benjamin.
इसलिए मैं कहता हूँ, क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नहीं! मैं भी तो इस्राएली हूँ; अब्राहम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूँ।
2 God did not cast off his people whom he foreknew. For do you not know what is said in the Scripture about Elijah? how he pleaded with God against Israel, saying,
परमेश्वर ने अपनी उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उसने पहले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्रशास्त्र एलिय्याह की कथा में क्या कहता है; कि वह इस्राएल के विरोध में परमेश्वर से विनती करता है।
3 Lord, they have killed thy prophets, they have overthrown thine altars; And now I alone am left, and they seek my life.
“हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला, और तेरी वेदियों को ढा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूँ, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।”
4 But what was the answer of God to him? I have reserved for myself seven thousand who have not bowed the knee to Baal.
परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उत्तर मिला “मैंने अपने लिये सात हजार पुरुषों को रख छोड़ा है जिन्होंने बाल के आगे घुटने नहीं टेके हैं।”
5 In the same way also at this time there is a remnant chosen by gift of grace.
इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कुछ लोग बाकी हैं।
6 But if it is by grace, it is no longer of works; or else grace is no more grace.
यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मों से नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा।
7 What then? that which Israel has been seeking for, that he has not obtained; but the chosen have obtained it, and the rest have been hardened.
फिर परिणाम क्या हुआ? यह कि इस्राएली जिसकी खोज में हैं, वह उनको नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं।
8 According as it is written, God has given them a spirit of slumber, Eyes that they should not see, Ears that they should not hear, unto this day.
जैसा लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक मंदता की आत्मा दे रखी है और ऐसी आँखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।”
9 As David says. Let their table be made a snare and a trap, And a stumbling-block and a recompense unto them;
और दाऊद कहता है, “उनका भोजन उनके लिये जाल, और फंदा, और ठोकर, और दण्ड का कारण हो जाए।
10 Let their eyes be darkened, that they may not see, And bow thou down their backs forever.
१०उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए ताकि न देखें, और तू सदा उनकी पीठ को झुकाए रख।”
11 I ask then, "Have they stumbled so as to fall?" No indeed; but by their lapse salvation has come unto Gentiles, "to provoke Israel to jealousy."
११तो मैं कहता हूँ क्या उन्होंने इसलिए ठोकर खाई, कि गिर पड़ें? कदापि नहीं परन्तु उनके गिरने के कारण अन्यजातियों को उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो।
12 Now if their stumbling enriches the world, and their loss enriches the Gentiles, how much more must their fulness do!
१२अब यदि उनका गिरना जगत के लिये धन और उनकी घटी अन्यजातियों के लिये सम्पत्ति का कारण हुआ, तो उनकी भरपूरी से कितना न होगा।
13 For to you who are Gentiles I say that since I am an apostle to the Gentiles, I glorify my ministry,
१३मैं तुम अन्यजातियों से यह बातें कहता हूँ। जबकि मैं अन्यजातियों के लिये प्रेरित हूँ, तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूँ,
14 if by any means I might "provoke to jealousy" my kinsmen, and save some among them.
१४ताकि किसी रीति से मैं अपने कुटुम्बियों से जलन करवाकर उनमें से कई एक का उद्धार कराऊँ।
15 For if their casting out is the reconciliation of the world to God, what will their restoration be but life out of death?
१५क्योंकि जबकि उनका त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उनका ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा?
16 Now if the first-fruits of the dough Abraham and the Patriarchs are holy, so also is the whole mass their descendants. And if the root of a tree Abraham is holy, so also are the branches his descendants.
१६जब भेंट का पहला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गूँधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियाँ भी ऐसी ही हैं।
17 Supposing that some of the branches have been broken off, and you, although you were but a wild olive, have been grafted in among the branches and have become a partaker with them of the fatness of the olive tree, do not glory over the branches;
१७और यदि कई एक डाली तोड़ दी गईं, और तू जंगली जैतून होकर उनमें साटा गया, और जैतून की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है।
18 or if you are glorying, remember that it is not you who uphold the root, but the root which upholds you.
१८तो डालियों पर घमण्ड न करना; और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।
19 "Branches have been broken off," you say, "that I might be grafted in."
१९फिर तू कहेगा, “डालियाँ इसलिए तोड़ी गई, कि मैं साटा जाऊँ।”
20 True, through their unbelief they were broken off, and by your faith you stand. Do not be puffed up, but fear;
२०भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गईं, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिए अभिमानी न हो, परन्तु भय मान,
21 for if God spared not the natural branches, neither will he spare you.
२१क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियाँ न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा।
22 Fix your gaze, therefore, on the goodness and the severity of God; towards those who fell, severity, but towards you, God’s goodness, if you continue stedfast in his goodness; otherwise you, too, will be cut off.
२२इसलिए परमेश्वर की दयालुता और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर दयालुता, यदि तू उसमें बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा।
23 And they also those Jews, if they do not continue in their unbelief, will be grafted in again; for God is able to graft them in again.
२३और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएँगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें फिर साट सकता है।
24 For if you were cut out of that which is by nature a mere wild olive tree, and have been grafted, contrary to nature, into a fruitful olive tree, how much more shall these, the natural branches, be regrafted into their own olive tree?
२४क्योंकि यदि तू उस जैतून से, जो स्वभाव से जंगली है, काटा गया और स्वभाव के विरुद्ध अच्छी जैतून में साटा गया, तो ये जो स्वाभाविक डालियाँ हैं, अपने ही जैतून में साटे क्यों न जाएँगे।
25 For I would not, my brothers, have you ignorant of this hidden truth, for fear that you become wise in your own conceits. that a hardening in part has befallen Israel, until the fulness of the Gentiles is come in.
२५हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपने आपको बुद्धिमान समझ लो; इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियाँ पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।
26 And so all Israel will be saved, as it is written. The deliver will come from Zion, He will banish all ungodliness from Jacob;
२६और इस रीति से सारा इस्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है, “छुड़ानेवाला सिय्योन से आएगा, और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।
27 This is my covenant with them, When I shall take away their sins.
२७और उनके साथ मेरी यही वाचा होगी, जबकि मैं उनके पापों को दूर कर दूँगा।”
28 In relation to the gospel, the Jews are God’s enemies for your sake; but in relation to the election, they are dearly loved for their forefather’s sake.
२८सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे लिए वे परमेश्वर के बैरी हैं, परन्तु चुन लिये जाने के भाव से पूर्वजों के कारण प्यारे हैं।
29 For no change of purpose can annul God’s free gift and call.
२९क्योंकि परमेश्वर अपने वरदानों से, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।
30 And as in times past you were yourselves disobedient to God, but now, thanks to their disobedience, have obtained mercy;
३०क्योंकि जैसे तुम ने पहले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उनके आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई।
31 even so they also have now been disobedient, that by the mercy shown to you they also may now obtain mercy.
३१वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इससे उन पर भी दया हो।
32 For God has locked up all in the prison of disobedience, that upon all he may have mercy. (eleēsē g1653)
३२क्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा है ताकि वह सब पर दया करे। (eleēsē g1653)
33 Oh, the depths of the riches, both of the wisdom and the knowledge of God! How unfathomable are his judgments, and how unsearchable his paths!
३३अहा, परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गम्भीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!
34 Who has known the mind of the Lord? Or who has been his counsellor?
३४“प्रभु कि बुद्धि को किसने जाना? या उनका मंत्री कौन हुआ?
35 Who has first given to Him, So as to receive payment in return?
३५या किसने पहले उसे कुछ दिया है जिसका बदला उसे दिया जाए?”
36 For of him and through him, and for him, are all things. All glory to him forever and ever! Amen. (aiōn g165)
३६क्योंकि उसकी ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (aiōn g165)

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