< Job 7 >
1 Har Mennesket på Jord ej Krigerkår? Som en Daglejers er hans Dage.
१“क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?
2 Som Trællen, der higer efter Skygge som Daglejeren, der venter på Løn,
२जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, या मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे;
3 så fik jeg Skuffelses Måneder i Arv kvalfulde Nætter til Del.
३वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं।
4 Når jeg lægger mig, siger jeg: "Hvornår er det Dag, af jeg kan stå op?" og når jeg står op: "Hvornår er det Kvæld?" Jeg mættes af Uro, til Dagen gryr.
४जब मैं लेट जाता, तब कहता हूँ, ‘मैं कब उठूँगा?’ और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते-छटपटाते थक जाता हूँ।
5 Mit Legeme er klædt med Orme og Skorpe, min Hud skrumper ind og væsker.
५मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है।
6 Raskere end Skyttelen flyver mine Dage, de svinder bort uden Håb.
६मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक फुर्ती से चलनेवाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं।
7 Kom i Hu, at mit Liv er et Pust, ej mer får mit Øje Lykke at skue!
७“याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपनी आँखों से कल्याण फिर न देखूँगा।
8 Vennens Øje skal ikke se mig, dit Øje søger mig - jeg er ikke mere.
८जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूँगा; तेरी आँखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूँगा।
9 Som Skyen svinder og trækker bort, bliver den, der synker i Døden, borte, (Sheol )
९जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहाँ से नहीं लौट सकता; (Sheol )
10 han vender ej atter hjem til sit Hus, hans Sted får ham aldrig at se igen.
१०वह अपने घर को फिर लौट न आएगा, और न अपने स्थान में फिर मिलेगा।
11 Så vil jeg da ej lægge Bånd på min Mund, men tale i Åndens Kvide, sukke i bitter Sjælenød.
११“इसलिए मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा; अपने मन का खेद खोलकर कहूँगा; और अपने जीव की कड़वाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूँगा।
12 Er jeg et Hav, eller er jeg en Drage, siden du sætter Vagt ved mig?
१२क्या मैं समुद्र हूँ, या समुद्री अजगर हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?
13 Når jeg tænker, mit Leje skal lindre mig, Sengen lette mit Suk,
१३जब जब मैं सोचता हूँ कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा;
14 da ængster du mig med Drømme, skræmmer mig op ved Syner,
१४तब-तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता, और दर्शनों से भयभीत कर देता है;
15 så min Sjæl vil hellere kvæles. hellere dø end lide.
१५यहाँ तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।
16 Nu nok! Jeg lever ej evigt, slip mig, mit Liv er et Pust!
१६मुझे अपने जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल साँस सा है, इसलिए मुझे छोड़ दे।
17 Hvad er et Menneske, at du regner ham og lægger Mærke til ham,
१७मनुष्य क्या है कि तू उसे महत्त्व दे, और अपना मन उस पर लगाए,
18 hjemsøger ham hver Morgen, ransager ham hvert Øjeblik?
१८और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जाँचता रहे?
19 Når vender du dog dit Øje fra mig, slipper mig, til jeg har sunket mit Spyt?
१९तू कब तक मेरी ओर आँख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूँ?
20 Har jeg syndet, hvad skader det dig, du, som er Menneskets Vogter? Hvi gjorde du mig til Skive, hvorfor blev jeg dig til Byrde?
२०हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैंने पाप तो किया होगा, तो मैंने तेरा क्या बिगाड़ा? तूने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहाँ तक कि मैं अपने ऊपर आप ही बोझ हुआ हूँ?
21 Hvorfor tilgiver du ikke min Synd og lader min Brøde uænset? Snart ligger jeg jo under Mulde, du søger mig - og jeg er ikke mere!
२१और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊँगा, और तू मुझे यत्न से ढूँढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।”