< المَزامِير 131 >
تَرْنِيمَةُ الْمَصَاعِدِ. لِدَاوُدَ يَا رَبُّ لَمْ يَشْمَخْ قَلْبِي وَلَا اسْتَعْلَتْ عَيْنَايَ وَلَا حَفَلْتُ بِالْعَظَائِمِ وَمَا يَفُوقُ إِدْرَاكِي. | ١ 1 |
१दाऊद की यात्रा का गीत हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; और जो बातें बड़ी और मेरे लिये अधिक कठिन हैं, उनसे मैं काम नहीं रखता।
وَلَكِنِّي سَكَّنْتُ نَفْسِي وَهَدَّأْتُهَا، فَصَارَ قَلْبِي مُطْمَئِنّاً كَطِفْلٍ مَفْطُومٍ مُسْتَسْلِمٍ بَيْنَ ذِرَاعَيْ أُمِّهِ | ٢ 2 |
२निश्चय मैंने अपने मन को शान्त और चुप कर दिया है, जैसे दूध छुड़ाया हुआ बच्चा अपनी माँ की गोद में रहता है, वैसे ही दूध छुड़ाए हुए बच्चे के समान मेरा मन भी रहता है।
لِيَتَرَجَّ إِسْرَائِيلُ الرَّبَّ مِنَ الآنَ وَإِلَى الأَبَدِ. | ٣ 3 |
३हे इस्राएल, अब से लेकर सदा सर्वदा यहोवा ही पर आशा लगाए रह!