< المَزامِير 121 >
تَرْنِيمَةُ الْمَصَاعِدِ أَرْفَعُ عَيْنَيَّ إِلَى الْجِبَالِ. مِنْ أَيْنَ يَأْتِي عَوْنِي؟ | ١ 1 |
मैं अपनी आँखें पहाड़ों की तरफ उठाऊगा; मेरी मदद कहाँ से आएगी?
يَأْتِي عَوْنِي مِنْ عِنْدِ الرَّبِّ، صَانِعِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ. | ٢ 2 |
मेरी मदद ख़ुदावन्द से है, जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया।
لَا يَدَعُ قَدَمَكَ تَزِلُّ. لَا يَنْعَسُ حَافِظُكَ. | ٣ 3 |
वह तेरे पाँव को फिसलने न देगा; तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं।
لَا يَنْعَسُ وَلَا يَنَامُ حَافِظُ إِسْرَائِيلَ. | ٤ 4 |
देख! इस्राईल का मुहाफ़िज़, न ऊँघेगा, न सोएगा।
الرَّبُّ هُوَ حَافِظُكَ، الرَّبُّ سِتْرٌ لَكَ عَنْ يَمِينِكَ. | ٥ 5 |
ख़ुदावन्द तेरा मुहाफ़िज़ है; ख़ुदावन्द तेरे दहने हाथ पर तेरा सायबान है।
لَنْ تَضْرِبَكَ الشَّمْسُ بِحَرِّهَا نَهَاراً وَلَا الْقَمَرُ بِنُورِهِ لَيْلاً. | ٦ 6 |
न आफ़ताब दिन को तुझे नुक़सान पहुँचाएगा, न माहताब रात को।
يَقِيكَ الرَّبُّ مِنْ كُلِّ شَرٍّ. يَقِي نَفْسَكَ. | ٧ 7 |
ख़ुदावन्द हर बला से तुझे महफूज़ रख्खेगा, वह तेरी जान को महफूज़ रख्खेगा।
الرَّبُّ يَحْفَظُ ذِهَابَكَ وَإِيَابَكَ مِنَ الآنَ وَإِلَى الأَبَدِ. | ٨ 8 |
ख़ुदावन्द तेरी आमद — ओ — रफ़्त में, अब से हमेशा तक तेरी हिफ़ाज़त करेगा।