< إشَعْياء 64 >
لَيْتَكَ تَشُقُّ السَّمَاوَاتِ وَتَنْزِلُ فَتَتَزَلْزَلَ الْجِبَالُ مِنْ حَضْرَتِكَ! | ١ 1 |
काश कि तू आसमान को फाड़े और उतर आए कि तेरे सामने पहाड़ लरज़िश खाएँ।
فَتَكُونُ كَالنَّارِ الَّتِي تُضْرِمُ الْهَشِيمَ، وَتَجْعَلُ الْمِيَاهَ تَغْلِي لِكَيْ تُعَرِّفَ أَعْدَاءَكَ اسْمَكَ، فَتَرْتَعِبُ الأُمَمُ مِنْ حَضْرَتِكَ. | ٢ 2 |
जिस तरह आग सूखी डालियों को जलाती है और पानी आग से जोश मारता है ताकि तेरा नाम तेरे मुख़ालिफ़ों में मशहूर हो और क़ौमें तेरे सामने में लरज़ाँ हों।
عِنْدَمَا أَجْرَيْتَ أَعْمَالاً مُخِيفَةً لَمْ نَتَوَقَّعْهَا، نَزَلْتَ فَتَزَلْزَلَتِ الْجِبَالُ مِنْ حَضْرَتِكَ. | ٣ 3 |
जिस वक़्त तूने बड़े काम किए जिनके हम मुन्तज़िर न थे, तू उतर आया और पहाड़ तेरे सामने काँप गए।
مُنْذُ الأَزَلِ لَمْ يَسْمَعْ أَحَدٌ وَلَمْ تُصْغِ أُذُنٌ وَلَمْ تَرَ عَيْنٌ إِلَهاً سِوَاكَ يُجْرِي مَا تَصْنَعُهُ لِلَّذِينَ يَنْتَظِرُونَكَ. | ٤ 4 |
क्यूँकि शुरू' ही से न किसी ने सुना, न किसी के कान तक पहुँचा और न आँखों ने तेरे सिवा ऐसे ख़ुदा को देखा, जो अपने इन्तिज़ार करनेवाले के लिए कुछ कर दिखाए।
أَنْتَ تُلاقِي مَنْ يَفْرَحُ بِعَمَلِ الْبِرِّ وَمَنْ يَسْلُكُ دَائِماً فِي طُرُقِكَ. لَكَمْ سُخْطْتَ عَلَيْنَا لأَنَّنَا وَاظَبْنَا عَلَى ارْتِكَابِ الآثَامِ زَمَاناً طَوِيلاً، فَكَيْفَ لِمِثْلِنَا أَنْ يَخْلُصَ؟ | ٥ 5 |
तू उससे मिलता है जो ख़ुशी से सदाक़त के काम करता है, और उनसे जो तेरी राहों में तुझे याद रखते हैं; देख, तू ग़ज़बनाक हुआ क्यूँकि हम ने गुनाह किया, और मुद्दत तक उसी में रहे; क्या हम नजात पाएँगे?
كُلُّنَا أَصْبَحْنَا كَنَجِسٍ، وَأَضْحَتْ جَمِيعُ أَعْمَالِ بِرِّنَا كَثَوْبٍ قَذِرٍ، فَذَبُلْنَا كَأَوْرَاقِ الشَّجَرِ وَعَبَثَتْ بِنَا آثَامُنَا كَالرِّيحِ. | ٦ 6 |
और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रस्तबाज़ी नापाक लिबास की तरह है। और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं, और हमारी बदकिरदारी आँधी की तरह हम को उड़ा ले जाती है।
لَيْسَ هُنَاكَ مَنْ يُنَادِي بِاسْمِكَ، وَيَحْرِصُ عَلَى التَّمَسُّكِ بِكَ لأَنَّكَ حَجَبْتَ وَجْهَكَ عَنَّا ولاشَيْتَنَا بِسَبَبِ مَعَاصِينَا. | ٧ 7 |
और कोई नहीं जो तेरा नाम ले, जो अपने आपको आमादा करे कि तुझ से लिपटा रहे; क्यूँकि हमारी बदकिरदारी की वजह से तू हम से छिपा रहा और हम को पिघला डाला।
وَمَعَ ذَلِكَ فَأَنْتَ أَيُّهَا الرَّبُّ أَبُونَا، نَحْنُ الطِّينُ وَأَنْتَ الْخَزَّافُ، وَكُلُّنَا عَمَلُ يَدَيْكَ. | ٨ 8 |
तोभी ऐ ख़ुदावन्द, तू हमारा बाप है; हम मिट्टी है और तू हमारा कुम्हार है, और हम सब के सब तेरी दस्तकारी हैं।
لَا تُوْغِلْ فِي غَضَبِكَ عَلَيْنَا يَا رَبُّ، وَلا تَذْكُرِ الإِثْمَ إِلَى الأَبَدِ. إِنَّمَا انْظُرْ إِلَيْنَا، فَكُلُّنَا شَعْبُكَ. | ٩ 9 |
ऐ ख़ुदावन्द, ग़ज़बनाक न हो और बदकिरदारी को हमेशा तक याद न रख; देख, हम तेरी मिन्नत करते हैं, हम सब तेरे लोग हैं।
قَدِ اسْتَحَالَتْ مَدِينَتُكَ الْمُقَدَّسَةُ إِلَى قَفْرٍ، وَأَصْبَحَتْ صِهْيَوْنُ بَرِّيَّةً وَأُورُشَلِيمُ مُوحِشَةً، | ١٠ 10 |
तेरे पाक शहर वीराने बन गए, सिय्यून सुनसान और येरूशलेम वीरान है।
وَاحْتَرَقَ بِالنَّارِ هَيْكَلُنَا الْمُقَدَّسُ الْبَهِيُّ، الَّذِي شَدَا آبَاؤُنَا فِيهِ بِتَسْبِيحِكَ، وَصَارَ كُلُّ مَا هُوَ أَثِيرٌ لَدَيْنَا خَرَاباً. | ١١ 11 |
हमारा ख़ुशनुमा मक़दिस जिसमें हमारे बाप दादा तेरी इबादत करते थे, आग से जलाया गया और हमारी उम्दा चीज़ें बर्बाद हो गईं।
هَلْ بَعْدَ هَذَا كُلِّهِ تَسْكُتُ يَا رَبُّ، وَتَعْتَصِمُ بِالصَّمْتِ وَتُنْزِلُ بِنَا أَشَدَّ الْبَلاءِ؟ | ١٢ 12 |
ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू इस पर भी अपने आप को रोकेगा? क्या तू ख़ामोश रहेगा और हम को यूँ बदहाल करेगा?