< دانيال 4 >
مِنْ نَبُوخَذْنَصَّرَ الْمَلِكِ إِلَى جَمِيعِ الشُّعُوبِ وَالأُمَمِ وَالأَقْوَامِ مِنْ كُلِّ لِسَانٍ الْمُقِيمِينَ فِي كُلِّ الأَرْضِ: لِيَكْثُرْ سَلامُكُمْ. | ١ 1 |
नबूकदनज़र बादशाह की तरफ़ से तमाम लोगों, उम्मतों और अहल — ए — ज़ुबान के लिए जो तमाम इस ज़मीन पर रहते हैं: तुम्हारी सलामती होती रहे।
قَدْ طَابَ لِي أَنْ أُحَدِّثَ بِالآيَاتِ وَالْعَجَائِبِ الَّتِي صَنَعَهَا اللهُ الْعَلِيُّ، | ٢ 2 |
मैने मुनासिब जाना कि उन निशानों और 'अजायब को ज़ाहिर करूँ जो ख़ुदा — त'आला ने मुझ पर ज़ाहिर किए हैं।
فَمَا أَعْظَمَ آيَاتِهِ وَمَا أَقْوَى عَجَائِبَهُ. إِنَّ مَلَكُوتَهُ أَبَدِيٌّ وَسُلْطَانَهُ يَدُومُ عَلَى مَدَى الأَجْيَالِ. | ٣ 3 |
उसके निशान कैसे 'अज़ीम, और उसके 'अजायब कैसे पसंदीदा हैं! उसकी ममलुकत हमेशा की ममलुकत है, और उसकी सल्तनत नसल — दर — नसल।
أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ كُنْتُ مُقِيماً مُطْمَئِنّاً فِي بَيْتِي، أَتَمَتَّعُ فِي الْبُحْبُوحَةِ فِي قَصْرِي، | ٤ 4 |
मैं, नबूकदनज़र, अपने घर में मुतम'इन और अपने महल में कामयाब था।
فَرَأَيْتُ حُلْماً أَثَارَ فَزَعِي، وَأَقْلَقَتْنِي عَلَى مَضْجَعِي أَفْكَارِي وَرُؤَى رَأْسِي، | ٥ 5 |
मैने एक ख़्वाब देखा, जिससे मैं परेशान हो गया और उन ख़्यालात से जो मैने पलंग पर किए और उन ख़्यालों से जो मेरे दिमाग़ में आए, मुझे परेशानी हुई।
فَأَصْدَرْتُ أَمْراً بِاسْتِدْعَاءِ جَمِيعِ حُكَمَاءِ بَابِلَ أَمَامِي لِيُطْلِعُونِي عَلَى تَفْسِيرِ الْحُلْمِ. | ٦ 6 |
इसलिए मैने फ़रमान जारी किया कि बाबुल के तमाम हकीम मेरे सामने हाज़िर किए जाएँ, ताकि मुझसे उस ख़्वाब की ता'बीर बयान करें।
فَحَضَرَ الْمَجُوسُ وَالسَّحَرَةُ وَالْكَلْدَانِيُّونَ وَالْمُنَجِّمُونَ، فَسَرَدْتُ الْحُلْمَ عَلَيْهِمْ فَعَجَزُوا عَنْ تَفْسِيرِهِ. | ٧ 7 |
चुनाँचे जादूगर और नजूमी और कसदी और फ़ालगीर हाज़िर हुए, और मैने उनसे अपने ख़्वाब का बयान किया, पर उन्होंने उसकी ता'बीर मुझ से बयान न की।
أَخِيراً مَثَلَ فِي حَضْرَتِي دَانِيَالُ الْمَدْعُو بَلْطَشَاصَّرَ، كَاسْمِ إِلَهِي، الَّذِي فِيهِ رُوحُ الآلِهَةِ الْقُدُّوسِينَ فَقَصَصْتُ عَلَيْهِ الْحُلْمَ. | ٨ 8 |
आख़िरकार दानीएल मेरे सामने आया, जिसका नाम बेल्तशज़र है, जो मेरे मा'बूद का भी नाम है, उसमें मुक़द्दस इलाहों की रूह है; इसलिए मैने उसके आमने — सामने ख़्वाब का बयान किया और कहा:
قُلْتُ: «يَا بَلْطَشَاصَّرُ رَئِيسُ الْمَجُوسِ، إِنِّي أَعْلَمُ أَنَّ فِيكَ رُوحَ الآلهَةِ الْقُدُّوسِينَ وَلا يَتَعَذَّرُ عَلَيْكَ سِرٌّ، فَأَخْبِرْنِي بِرُؤَى حُلْمِي الَّذِي شَهِدْتُهُ وَبِتَفْسِيرِهِ. | ٩ 9 |
ऐ बेल्तशज़र, जादूगरों के सरदार, चूँकि मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमे है, और कि कोई राज़ की बात तेरे लिए मुश्किल नहीं; इसलिए जो ख़्वाब मैने देखा उसकी कैफ़ियत और ता'बीर बयान कर।
وَهَذِهِ هِيَ الرُّؤْيَا الَّتِي شَهِدْتُهَا فِي مَنَامِي: رَأَيْتُ وَإذَا بِشَجَرَةٍ مُنْتَصِبَةٍ فِي وَسَطِ الأَرْضِ ذَاتِ ارْتِفَاعٍ عَظِيمٍ، | ١٠ 10 |
पलंग पर मेरे दिमाग़ की रोया ये थी: मैने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ज़मीन के तह में एक निहायत ऊँचा दरख़्त है।
وَقَدْ نَمَتِ الشَّجَرَةُ وَقَوِيَتْ حَتَّى بَلَغَ ارْتِفَاعُهَا السَّمَاءَ، وَبَدَتْ لِلْعِيَانِ حَتَّى إِلَى أَطْرَافِ الأَرْضِ. | ١١ 11 |
वह दरख़्त बढ़ा और मज़बूत हुआ और उसकी चोटी आसमान तक पहुँची, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देने लगा।
وَكَانَتْ أَوْرَاقُهَا جَمِيلَةً وَأَثْمَارُهَا كَثِيرَةً، تَوَافَرَ فِيهَا غِذَاءٌ لِلْجَمِيعِ، وَتَحْتَهَا تَسْتَظِلُّ وُحُوشُ الصَّحْرَاءِ وَتَأْوِي إِلَى أَغْصَانِهَا طُيُورُ السَّمَاءِ، وَمِنْهَا يَقْتَاتُ كُلُّ ذِي جَسَدٍ. | ١٢ 12 |
उसके पत्ते खु़शनुमा थे और मेवा फ़िरावान था, और उसमें सबके लिए ख़ुराक थी; मैदान के जानवर उसके साये में और हवा के परिन्दे उसकी शाखों पर बसेरा करते थे, और तमाम बशर ने उस से परवरिश पाई।
ثُمَّ شَاهَدْتُ فِي الرُّؤَى وَأَنَا فِي مَنَامِي، وَإذَا بِرَقِيبٍ قُدُّوسٍ قَدْ نَزَلَ مِنَ السَّمَاءِ، | ١٣ 13 |
“मैने अपने पलंग पर अपनी दिमाग़ी रोया पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक निगहबान, हाँ एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा।
وَهَتَفَ بِصَوْتٍ مُدَوٍّ وَقَالَ: اقْطَعُوا الشَّجَرَةَ وَاقْضِبُوا أَغْصَانَهَا وَبَعْثِرُوا أَوْرَاقَهَا وَانْثُرُوا أَثْمَارَهَا، لِتَشْرُدَ الْوُحُوشُ مِنْ تَحْتِهَا، وَتَهْجُرَ الطُّيُورُ أَغْصَانَهَا. | ١٤ 14 |
उसने बलन्द आवाज़ से पुकार कर यूँ कहा कि 'दरख़्त को काटो, उसकी शाखें तराशो, और उसके पत्ते झाड़ो, और उसका फल बिखेर दो; जानवर उसके नीचे से चले जाएँ और परिन्दे उसकी शाखों पर से उड़ जाएँ।
وَلَكِنِ اتْرُكُوا سَاقَ أَصْلِهَا فِي الأَرْضِ، وَأَوْثِقُوهُ بَقَيْدٍ مِنْ حَدِيدٍ وَنُحَاسٍ فِي وَسَطِ عُشْبِ الْحَقْلِ، لِيَبْتَلَّ بِنَدَى السَّمَاءِ، وَلْيَكُنْ طَعَامُهُ مِنْ عُشْبِ الْحَقْلِ مَعَ الْبَهَائِمِ. | ١٥ 15 |
लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो, हाँ, लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ मैदान की हरी घास में रहने दो, और वह आसमान की शबनम से तर हो, और उसका हिस्सा ज़मीन की घास में हैवानों के साथ हो।
وَلْيَتَحَوَّلْ عَقْلُهُ مِنْ عَقْلِ إِنْسَانٍ إِلَى عَقْلِ حَيَوَانٍ إِلَى أَنْ تَنْقَضِيَ عَلَيْهِ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ. | ١٦ 16 |
उसका दिल इंसान का दिल न रहे, बल्कि उसको हैवान का दिल दिया जाए; और उस पर सात दौर गुज़र जाएँ।
قَدْ صَدَرَ هَذَا الْقَضَاءُ عَنْ أَمْرِ الرُّقَبَاءِ السَّاهِرِينَ، وَقَرَارُ الْحُكْمِ بِكَلِمَةِ الْقُدُّوسِينَ، لِكَيْ يُدْرِكَ الأَحْيَاءُ أَنَّ الْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ النَّاسِ، يَهَبُهَا لِمَنْ يَشَاءُ، وَيُوَلِّي عَلَيْهَا أَحْقَرَهُمْ. | ١٧ 17 |
यह हुक्म निगहबानों के फ़ैसले से है, और यह हुक्म फ़रिश्तों के कहने के मुताबिक़ है, ताकि सब जानदार पहचान लें कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और जिसको चाहता है उसे देता है, बल्कि आदमियों में से अदना आदमी को उस पर क़ायम करता है।
هَذَا هُوَ الْحُلْمُ الَّذِي رَأَيْتُهُ أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرَ الْمَلِكُ، وَعَلَيْكَ أَنْتَ يَا بَلْطَشَاصَّرُ أَنْ تُفَسِّرَهُ، لأَنَّ كُلَّ حُكَمَاءِ مَمْلَكَتِي قَدْ عَجَزُوا عَنْ إِطْلاعِي عَلَى تَفْسِيرِهِ. أَمَّا أَنْتَ فَتَسْتَطِيعُ ذَلِكَ لأَنَّ فِيكَ رُوحَ الآلِهَةِ الْقُدُّوسِينَ». | ١٨ 18 |
मैं नबूकदनज़र बादशाह ने यह ख़्वाब देखा है। ऐ बेल्तशज़र, तू इसकी ता'बीर बयान कर, क्यूँकि मेरी ममलुकत के तमाम हकीम मुझसे उसकी ता'बीर बयान नहीं कर सकते, लेकिन तू कर सकता है; क्यूँकि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमें मौजूद है।”
حِينَئِذٍ انْتَابَتِ الْحَيْرَةُ دَانِيَالَ الْمَدْعُو بَلْطَشَاصَّرَ طَوَالَ سَاعَةٍ وَرَوَّعَتْهُ أَفْكَارُهُ، فَقَالَ لَهُ الْمَلِكُ: «لا يُفْزِعُكَ الْحُلْمُ وَلا تَفْسِيرُهُ يَا بَلْطَشَاصَّرُ». فَأَجَابَ: «لِيَرْتَدَّ الْحُلْمُ عَلَى مُبْغِضِيكَ وَتَفْسِيرُهُ عَلَى أَعَادِيكَ. | ١٩ 19 |
तब दानीएल जिसका नाम बेल्तशज़र है, एक वक़्त तक ख़ामोश रहा, और अपने ख़्यालात में परेशान हुआ। बादशाह ने उससे कहा, ऐ बेल्तशज़र, ख़्वाब और उसकी ता'बीर से तू परेशान न हो। बेल्तशज़र ने जवाब दिया, ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ये ख़्वाब तुझसे कीना रखने वालों के लिए और उसकी ता'बीर तेरे दुश्मनों के लिए हो!
الشَّجَرَةُ الَّتِي شَاهَدْتَهَا وَالَّتِي نَمَتْ وَاشْتَدَّتْ وَبَلَغَ ارْتِفَاعُهَا السَّمَاءَ فَبَدَتْ لِلْعِيَانِ حَتَّى أَطْرَافِ الأَرْضِ، | ٢٠ 20 |
वह दरख़्त जो तूने देखा कि बढ़ा और मज़बूत हुआ, जिसकी चोटी आसमान तक पहुँची और ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देता था;
وَكَانَتْ أَوْرَاقُهَا جَمِيلَةً وَأَثْمَارُهَا كَثِيرَةً، تَوَافَرَ فِيهَا غِذَاءٌ لِلْجَمِيعِ، وَتَحْتَهَا تَسْتَظِلُّ وُحُوشُ الصَّحْرَاءِ وَتَأْوِي إِلَى أَغْصَانِهَا طُيُورُ السَّمَاءِ، | ٢١ 21 |
जिसके पत्ते ख़ुशनुमा थे और मेवा फ़रावान था, जिसमें सबके लिए ख़ुराक थी। जिसके साये में मैदान के जानवर और शाखों पर हवा के परिन्दे बसेरा करते थे।
هِيَ أَنْتَ أَيُّهَا الْمَلِكُ الَّذِي نَمَوْتَ وَقَوِيَتْ شَوْكَتُكَ وَازْدَادَتْ عَظَمَتُكَ، حَتَّى بَلَغَتْ إِلَى السَّمَاءِ، وَسُلْطَانُكَ إِلَى أَطْرَافِ الأَرْضِ. | ٢٢ 22 |
ऐ बादशाह, वह तू ही है जो बढ़ा और मज़बूत हुआ, क्यूँकि तेरी बुज़ुर्गी बढ़ी और आसमान तक पहुँची और तेरी सल्तनत ज़मीन की इन्तिहा तक।
أَمَّا مَا شَاهَدْتَهُ مِنْ أَنَّ رَقِيباً قُدُّوساً قَدْ نَزَلَ مِنَ السَّمَاءِ وَقَالَ: اقْطَعُوا الشَّجَرَةَ وَأَفْنُوهَا، وَلَكِنِ اتْرُكُوا سَاقَ أَصْلِهَا فِي الأَرْضِ، وَأَوْثِقُوهُ بِقَيْدٍ مِنْ حَدِيدٍ وَنُحَاسٍ فِي وَسَطِ عُشْبِ الْحَقْلِ، لِيَبْتَلَّ بِنَدَى السَّمَاءِ، وَلْيَكُنْ طَعَامُهُ مِنْ عُشْبِ الْحَقْلِ مَعَ الْبَهَائِمِ، | ٢٣ 23 |
और जो बादशाह ने देखा कि एक निगहबान, यहाँ, एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा और कहने लगा, 'दरख़्त को काट डालों और उसे बर्बाद करो, लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो; बल्कि उसे लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ, मैदान की हरी घास में रहने दो कि वह आसमान की शबनम से तर हो, और जब तक उस पर सात दौर न गुज़र जाएँ उसका हिस्सा ज़मीन के हैवानों के साथ हो।
فَهَذَا هُوَ تَفْسِيرُهُ، وَهَذَا هُوَ قَضَاءُ الْعَلِيِّ الَّذِي يَحُلُّ بِسَيِّدِي الْمَلِكِ: | ٢٤ 24 |
ऐ बादशाह, इसकी ता'बीर और हक़ — त'आला का वह हुक्म, जो बदशाह मेरे ख़ुदावन्द के हक़ में हुआ है यही है,
سَيَطْرُدُونَكَ مِنْ بَيْنِ النَّاسِ فَتَأْوِي مَعَ حَيَوَانِ الصَّحْرَاءِ، يُطْعِمُونَكَ الْعُشْبَ كَالثِّيرَانِ، وَتَبْتَلُّ بِنَدَى السَّمَاءِ، إِلَى أَنْ تَنْقَضِيَ عَلَيْكَ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ، حَتَّى تَعْلَمَ أَنَّ الْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ النَّاسِ يَهَبُهَا مَنْ يَشَاءُ. | ٢٥ 25 |
कि तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा, और तू बैल की तरह घास खाएगा और आसमान की शबनम से तर होगा, और तुझ पर सात दौर गुज़र जाएँगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला इंसान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और उसे जिसको चाहता है देता है।
أَمَّا الأَمْرُ الصَّادِرُ بِالْمُحَافَظَةِ عَلَى سَاقِ الشَّجَرَةِ فَمَعْنَاهُ أَنَّ مَمْلَكَتَكَ تَبْقَى لَكَ حَتَّى تُدْرِكَ أَنَّ السِّيَادَةَ هِيَ لِلسَّمَاءِ. | ٢٦ 26 |
और यह जो उन्होंने हुक्म किया कि दरख़्त की जड़ों के हिस्से को बाक़ी रहने दो, उसका मतलब ये है कि जब तू मा'लूम कर चुकेगा कि बादशाही का इख़्तियार आसमान की तरफ़ से है, तो तू अपनी सल्तनत पर फिर क़ायम हो जाएगा।
لِذَلِكَ أَيُّهَا الْمَلِكُ، تَقَبَّلْ مَشُورَتِي وَتَخَلَّ عَنْ خَطَايَاكَ بِالْبِرِّ وَآثَامِكَ بِمُمَارَسَةِ الرَّحْمَةِ مَعَ الْبَائِسِينَ، عَسَى أَنْ يَطُولَ فَلاحُكَ». | ٢٧ 27 |
इसलिए ऐ बादशाह, तेरे सामने मेरी सलाह क़ुबूल हो और तू अपनी ख़ताओं को सदाक़त से और अपनी बदकिरदारी को मिस्कीनों पर रहम करने से दूर कर, मुम्किन है इससे तेरा इत्मिनान ज़्यादा हो।
وَقَدْ أَصَابَ نَبُوخَذْنَصَّرَ الْمَلِكَ كُلُّ مَا أَنْبَأَ بِهِ دَانِيَالُ. | ٢٨ 28 |
यह सब कुछ नबूकदनज़र बादशाह पर गुज़रा।
فَبَعْدَ انْقِضَاءِ اثْنَيْ عَشَرَ شَهْراً عَلَى هَذَا الْحُلْمِ، وَفِيمَا كَانَ نَبُوخَذْنَصَّرُ يَتَمَشَّى عَلَى سَطْحِ قَصْرِ بَابِلَ الْمَلَكِيِّ، | ٢٩ 29 |
एक साल बाद वह बाबुल के शाही महल में टहल रहा था।
قَالَ: «أَلَيْسَتْ هَذِهِ هِيَ بَابِلُ الْعَظِيمَةُ الَّتِي بَنَيْتُهَا بِقُوَّةِ اقْتِدَارِي لِتَكُونَ عَاصِمَةً لِلْمَمْلَكَةِ، وَلِجَلالِ مَجْدِي؟» | ٣٠ 30 |
बादशाह ने फ़रमाया, “क्या यह बाबुल — ए — आज़म नहीं, जिसको मैने अपनी तवानाई की कु़दरत से ता'मीर किया है कि दार — उस — सल्तनत और मेरे जाह — ओ — जलाल का नमूना हो?”
وَفِيمَا كَانَتْ كَلِمَاتُهُ بَعْدُ تَتَرَدَّدُ عَلَى شَفَتَيْهِ تَجَاوَبَ صَوْتٌ مِنَ السَّمَاءِ قَائِلاً: «يَا نَبُوخَذْنَصَّرُ الْمَلِكُ، لَكَ يَقُولُونَ الآنَ قَدْ زَالَ عَنْكَ الْمُلْكُ. | ٣١ 31 |
बादशाह यह बात कह ही रहा था कि आसमान से आवाज़ आई, ऐ नबूकदनज़र बादशाह, तेरे हक़ में यह फ़तवा है कि सल्तनत तुझ से जाती रही।
ثُمَّ يَطْرُدُونَكَ مِنْ بَيْنِ النَّاسِ فَتَأْوِي مَعَ حَيَوَانِ الصَّحْرَاءِ، وَيُطْعِمُونَكَ الْعُشْبَ كَالثِّيرَانِ إِلَى أَنْ تَنْقَضِيَ عَلَيْكَ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ، حَتَّى تَعْلَمَ أَنَّ الْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ النَّاسِ يَهَبُهَا لِمَنْ يَشَاءُ». | ٣٢ 32 |
और तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा और बैल की तरह घास खाएगा, और सात दौर तुझ पर गुज़ेरेंगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और उसे जिसको चाहता है, देता है।
فِي تِلْكَ السَّاعَةِ تَمَّ حُكْمُ الْقَضَاءِ عَلَى نَبُوخَذْنَصَّرَ، فَطُرِدَ مِنْ بَيْنِ النَّاسِ وَأَكَلَ الْعُشْبَ كَالثِّيرَانِ، وَابْتَلَّ جِسْمُهُ بِنَدَى السَّمَاءِ حَتَّى اسْتَرْخَى شَعْرُهُ مِثْلَ النُّسُورِ، وَطَالَتْ أَظْفَارُهُ مِثْلَ بَرَاثِنِ الطُّيُورِ. | ٣٣ 33 |
उसी वक़्त नबूकदनज़र बादशाह पर यह बात पूरी हुई, और वह आदमियों में से निकाला गया और बैलों की तरह घास खाता रहा और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ, यहाँ तक कि उसके बाल उक़ाब के परों की तरह और उसके नाख़ून परिन्दों के चँगुल की तरह बढ़ गए।
وَفِي خِتَامِ السَّبْعَةِ الأَزْمِنَةِ، أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ، الْتَفَتُّ نَحْوَ السَّمَاءِ، فَرَجَعَ إِلَيَّ عَقْلِي، وَبَارَكْتُ الْعَلِيَّ وَسَبَّحْتُ وَحَمَدْتُ الْحَيَّ الأَبَدِيَّ ذَا السُّلْطَانِ السَّرْمَدِيِّ، الَّذِي مُلْكُهُ عَلَى مَدَى الأَجْيَالِ. | ٣٤ 34 |
और इन दिनों के गुज़रने के बा'द, मैं नबूकदनज़र ने आसमान की तरफ़ आँखें उठाई और मेरी 'अक़्ल मुझमे फिर आई और मैने हक़ — त'आला का शुक्र किया, और उस हय्युल — क़य्यूम की बड़ाई — ओ — सना की, जिसकी सल्तनत हमेशा और जिसकी ममलुकत नसल — दर — नसल है।
وَعَرَفْتُ أَنَّ كُلَّ أَهْلِ الأَرْضِ لَا يُحْسَبُونَ شَيْئاً، وَأَنَّهُ يَفْعَلُ مَا يَشَاءُ فِي جُنْدِ السَّمَاءِ وَسُكَّانِ الأَرْضِ، وَلَيْسَ مَنْ يَكُفُّ يَدَهُ أَوْ يَقُولُ لَهُ: مَاذَا تَفْعَلُ؟ | ٣٥ 35 |
और ज़मीन के तमाम बाशिन्दे नाचीज़ गिने जाते हैं और वह आसमानी लश्कर और ज़मीन के रहने वालों के साथ जो कुछ चाहता है करता है; और कोई नहीं जो उसका हाथ रोक सके। या उससे कहे कि “तू क्या करता है?”
فِي ذَلِكَ الْحِينِ ثَابَ إِلَيَّ عَقْلِي، وعَادَ إِلَيَّ جَلالُ مَمْلَكَتِي وَمَجْدِي وَبَهَائِي، وَطَلَبَنِي مُشِيرِيَّ وَنُبَلاءُ دَوْلَتِي، وَتَثَبَّتُّ عَلَى عَرْشِ مَمْلَكَتِي وَازْدَادَتْ عَظَمَتِي جِدّاً. | ٣٦ 36 |
उसी वक़्त मेरी 'अक़्ल मुझ में फिर आई, और मेरी सल्तनत की शौकत के लिए मेरा रौ'ब और दबदबा फिर मुझमे बहाल हो गया, और मेरे सलाहकारों और अमीरों ने मुझे फिर ढूँडा और मैं अपनी ममलुकत में क़ाईम हुआ और मेरी 'अज़मत में अफ़ज़ूनी हुई।
فَالآنَ، أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ، أُسَبِّحُ وَأُمَجِّدُ وَأَحْمَدُ مَلِكَ السَّمَاءِ الَّذِي جَمِيعُ أَعْمَالِهِ حَقٌّ، وَطُرُقُهُ عَادِلَةٌ وَقَادِرٌ عَلَى إذْلالِ كُلِّ مَنْ يَسْلُكُ بِالْكِبْرِيَاءِ. | ٣٧ 37 |
अब मैं नबूकदनज़र, आसमान के बादशाह की बड़ाई और 'इज़्ज़त — ओ — ता'ज़ीम करता हूँ, क्यूँकि वह अपने सब कामों में रास्त और अपनी सब राहों में 'इन्साफ़ करता है; और जो मग़रूरी में चलते हैं उनको ज़लील कर सकता है।