< لُوقا 12 >
وَفِي أَثْنَاءِ ذَلِكَ، إِذِ ٱجْتَمَعَ رَبَوَاتُ ٱلشَّعْبِ، حَتَّى كَانَ بَعْضُهُمْ يَدُوسُ بَعْضًا، ٱبْتَدَأَ يَقُولُ لِتَلَامِيذِهِ: «أَوَّلًا تَحَرَّزُوا لِأَنْفُسِكُمْ مِنْ خَمِيرِ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ ٱلَّذِي هُوَ ٱلرِّيَاءُ، | ١ 1 |
इतने में जब हज़ारों आदमियों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरा पड़ता था, तो उसने सबसे पहले अपने शागिर्दों से ये कहना शुरू' किया, “उस ख़मीर से होशियार रहना जो फ़रीसियों की रियाकारी है।
فَلَيْسَ مَكْتُومٌ لَنْ يُسْتَعْلَنَ، وَلَا خَفِيٌّ لَنْ يُعْرَفَ. | ٢ 2 |
क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी, और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी।
لِذَلِكَ كُلُّ مَا قُلْتُمُوهُ فِي ٱلظُّلْمَةِ يُسْمَعُ فِي ٱلنُّورِ، وَمَا كَلَّمْتُمْ بِهِ ٱلْأُذْنَ فِي ٱلْمَخَادِعِ يُنَادَى بِهِ عَلَى ٱلسُّطُوحِ. | ٣ 3 |
इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है वो उजाले में सुना जाएगा; और जो कुछ तुम ने कोठरियों के अन्दर कान में कहा है, छतों पर उसका एलान किया जाएगा।”
وَلَكِنْ أَقُولُ لَكُمْ يَا أَحِبَّائِي: لَا تَخَافُوا مِنَ ٱلَّذِينَ يَقْتُلُونَ ٱلْجَسَدَ، وَبَعْدَ ذَلِكَ لَيْسَ لَهُمْ مَا يَفْعَلُونَ أَكْثَرَ. | ٤ 4 |
“मगर तुम दोस्तों से मैं कहता हूँ कि उनसे न डरो जो बदन को क़त्ल करते हैं, और उसके बाद और कुछ नहीं कर सकते।”
بَلْ أُرِيكُمْ مِمَّنْ تَخَافُونَ: خَافُوا مِنَ ٱلَّذِي بَعْدَمَا يَقْتُلُ، لَهُ سُلْطَانٌ أَنْ يُلْقِيَ فِي جَهَنَّمَ. نَعَمْ، أَقُولُ لَكُمْ: مِنْ هَذَا خَافُوا! (Geenna ) | ٥ 5 |
लेकिन मैं तुम्हें जताता हूँ कि किससे डरना चाहिए, उससे डरो जिसे इख़्तियार है कि क़त्ल करने के बाद जहन्नुम में डाले; हाँ, मैं तुम से कहता हूँ कि उसी से डरो। (Geenna )
أَلَيْسَتْ خَمْسَةُ عَصَافِيرَ تُبَاعُ بِفَلْسَيْنِ، وَوَاحِدٌ مِنْهَا لَيْسَ مَنْسِيًّا أَمَامَ ٱللهِ؟ | ٦ 6 |
क्या दो पैसे की पाँच चिड़िया नहीं बिकती? तो भी ख़ुदा के सामने उनमें से एक भी फ़रामोश नहीं होती।
بَلْ شُعُورُ رُؤُوسِكُمْ أَيْضًا جَمِيعُهَا مُحْصَاةٌ. فَلَا تَخَافُوا! أَنْتُمْ أَفْضَلُ مِنْ عَصَافِيرَ كَثِيرَةٍ! | ٧ 7 |
बल्कि तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए है; डरो, मत तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है।
وَأَقُولُ لَكُمْ: كُلُّ مَنِ ٱعْتَرَفَ بِي قُدَّامَ ٱلنَّاسِ، يَعْتَرِفُ بِهِ ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ قُدَّامَ مَلَائِكَةِ ٱللهِ. | ٨ 8 |
“और मैं तुम से कहता हूँ कि जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करे, इब्न — ए — आदम भी ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इक़रार करेगा।”
وَمَنْ أَنْكَرَنِي قُدَّامَ ٱلنَّاسِ، يُنْكَرُ قُدَّامَ مَلَائِكَةِ ٱللهِ. | ٩ 9 |
“मगर जो आदमियों के सामने मेरा इन्कार करे, ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इन्कार किया जाएगा।
وَكُلُّ مَنْ قَالَ كَلِمَةً عَلَى ٱبْنِ ٱلْإِنْسَانِ يُغْفَرُ لَهُ، وَأَمَّا مَنْ جَدَّفَ عَلَى ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ فَلَا يُغْفَرُ لَهُ. | ١٠ 10 |
और जो कोई इब्न — ए — आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहे, उसको मु'आफ़ किया जाएगा; लेकिन जो रूह — उल — क़ुद्दूस के हक़ में कुफ़्र बके, उसको मु'आफ़ न किया जाएगा।“
وَمَتَى قَدَّمُوكُمْ إِلَى ٱلْمَجَامِعِ وَٱلرُّؤَسَاءِ وَٱلسَّلَاطِينِ فَلَا تَهْتَمُّوا كَيْفَ أَوْ بِمَا تَحْتَجُّونَ أَوْ بِمَا تَقُولُونَ، | ١١ 11 |
“और जब वो तुम को 'इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियार वालों के पास ले जाएँ, तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह या क्या जवाब दें या क्या कहें।
لِأَنَّ ٱلرُّوحَ ٱلْقُدُسَ يُعَلِّمُكُمْ فِي تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ مَا يَجِبُ أَنْ تَقُولُوهُ». | ١٢ 12 |
क्यूँकि रूह — उल — क़ुद्दूस उसी वक़्त तुम्हें सिखा देगा कि क्या कहना चाहिए।“
وَقَالَ لَهُ وَاحِدٌ مِنَ ٱلْجَمْعِ: «يَا مُعَلِّمُ، قُلْ لِأَخِي أَنْ يُقَاسِمَنِي ٱلْمِيرَاثَ». | ١٣ 13 |
“फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, ऐ उस्ताद! मेरे भाई से कह कि मेरे बाप की जायदाद का मेरा हिस्सा मुझे दे।”
فَقَالَ لَهُ: «يَا إِنْسَانُ، مَنْ أَقَامَنِي عَلَيْكُمَا قَاضِيًا أَوْ مُقَسِّمًا؟». | ١٤ 14 |
उसने उससे कहा, “मियाँ! किसने मुझे तुम्हारा मुन्सिफ़ या बाँटने वाला मुक़र्रर किया है?”
وَقَالَ لَهُمُ: «ٱنْظُرُوا وَتَحَفَّظُوا مِنَ ٱلطَّمَعِ، فَإِنَّهُ مَتَى كَانَ لِأَحَدٍ كَثِيرٌ فَلَيْسَتْ حَيَاتُهُ مِنْ أَمْوَالِهِ». | ١٥ 15 |
और उसने उनसे कहा, “ख़बरदार! अपने आप को हर तरह के लालच से बचाए रख्खो, क्यूँकि किसी की ज़िन्दगी उसके माल की ज़्यादती पर मौक़ूफ़ नहीं।”
وَضَرَبَ لَهُمْ مَثَلًا قَائِلًا: «إِنْسَانٌ غَنِيٌّ أَخْصَبَتْ كُورَتُهُ، | ١٦ 16 |
और उसने उनसे एक मिसाल कही, “किसी दौलतमन्द की ज़मीन में बड़ी फ़सल हुई।“
فَفَكَّرَ فِي نَفْسِهِ قَائِلًا: مَاذَا أَعْمَلُ، لِأَنْ لَيْسَ لِي مَوْضِعٌ أَجْمَعُ فِيهِ أَثْمَارِي؟ | ١٧ 17 |
पस वो अपने दिल में सोचकर कहने लगा, 'मैं क्या करूँ? क्यूँकि मेरे यहाँ जगह नहीं जहाँ अपनी पैदावार भर रख्खूँ?'
وَقَالَ: أَعْمَلُ هَذَا: أَهْدِمُ مَخَازِنِي وَأَبْنِي أَعْظَمَ، وَأَجْمَعُ هُنَاكَ جَمِيعَ غَلَّاتِي وَخَيْرَاتِي، | ١٨ 18 |
उसने कहा, 'मैं यूँ करूँगा कि अपनी कोठियाँ ढा कर उनसे बड़ी बनाऊँगा;
وَأَقُولُ لِنَفْسِي: يَا نَفْسُ لَكِ خَيْرَاتٌ كَثِيرَةٌ، مَوْضُوعَةٌ لِسِنِينَ كَثِيرَةٍ. اِسْتَرِيحِي وَكُلِي وَٱشْرَبِي وَٱفْرَحِي! | ١٩ 19 |
और उनमें अपना सारा अनाज और माल भर दूँगा और अपनी जान से कहूँगा, कि ऐ जान! तेरे पास बहुत बरसों के लिए बहुत सा माल जमा है; चैन कर, खा पी ख़ुश रह।'
فَقَالَ لَهُ ٱللهُ: يَا غَبِيُّ! هَذِهِ ٱللَّيْلَةَ تُطْلَبُ نَفْسُكَ مِنْكَ، فَهَذِهِ ٱلَّتِي أَعْدَدْتَهَا لِمَنْ تَكُونُ؟ | ٢٠ 20 |
मगर ख़ुदा ने उससे कहा, 'ऐ नादान! इसी रात तेरी जान तुझ से तलब कर ली जाएगी, पस जो कुछ तू ने तैयार किया है वो किसका होगा?'
هَكَذَا ٱلَّذِي يَكْنِزُ لِنَفْسِهِ وَلَيْسَ هُوَ غَنِيًّا لِلهِ». | ٢١ 21 |
ऐसा ही वो शख़्स है जो अपने लिए ख़ज़ाना जमा करता है, और ख़ुदा के नज़दीक दौलतमन्द नहीं”
وَقَالَ لِتَلَامِيذِهِ: «مِنْ أَجْلِ هَذَا أَقُولُ لَكُمْ: لَا تَهْتَمُّوا لِحَيَاتِكُمْ بِمَا تَأْكُلُونَ، وَلَا لِلْجَسَدِ بِمَا تَلْبَسُونَ. | ٢٢ 22 |
फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि अपनी जान की फ़िक्र न करो कि हम क्या खाएँगे, और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे।“
اَلْحَيَاةُ أَفْضَلُ مِنَ ٱلطَّعَامِ، وَٱلْجَسَدُ أَفْضَلُ مِنَ ٱللِّبَاسِ. | ٢٣ 23 |
क्यूँकि जान ख़ुराक से बढ़ कर है और बदन पोशाक से।
تَأَمَّلُوا ٱلْغِرْبَانَ: أَنَّهَا لَا تَزْرَعُ وَلَا تَحْصُدُ، وَلَيْسَ لَهَا مَخْدَعٌ وَلَا مَخْزَنٌ، وَٱللهُ يُقِيتُهَا. كَمْ أَنْتُمْ بِٱلْحَرِيِّ أَفْضَلُ مِنَ ٱلطُّيُورِ! | ٢٤ 24 |
परिन्दों पर ग़ौर करो कि न बोते हैं और न काटते, न उनके खित्ता होता है न कोठी; तोभी ख़ुदा उन्हें खिलाता है। तुम्हारी क़द्र तो परिन्दों से कहीं ज़्यादा है।
وَمَنْ مِنْكُمْ إِذَا ٱهْتَمَّ يَقْدِرُ أَنْ يَزِيدَ عَلَى قَامَتِهِ ذِرَاعًا وَاحِدَةً؟ | ٢٥ 25 |
तुम में ऐसा कोन है जो फ़िक्र करके अपनी उम्र में एक घड़ी बढ़ा सके?
فَإِنْ كُنْتُمْ لَا تَقْدِرُونَ وَلَا عَلَى ٱلْأَصْغَرِ، فَلِمَاذَا تَهْتَمُّونَ بِٱلْبَوَاقِي؟ | ٢٦ 26 |
पस जब सबसे छोटी बात भी नहीं कर सकते, तो बाक़ी चीज़ों की फ़िक्र क्यूँ करते हो?
تَأَمَّلُوا ٱلزَّنَابِقَ كَيْفَ تَنْمُو: لَا تَتْعَبُ وَلَا تَغْزِلُ، وَلَكِنْ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ وَلَا سُلَيْمَانُ فِي كُلِّ مَجْدِهِ كَانَ يَلْبَسُ كَوَاحِدَةٍ مِنْهَا. | ٢٧ 27 |
सोसन के दरख़्तों पर ग़ौर करो कि किस तरह बढ़ते है; वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं, तोभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलैमान भी बावजूद अपनी सारी शान — ओ — शौकत के उनमें से किसी की तरह मुलब्बस न था।
فَإِنْ كَانَ ٱلْعُشْبُ ٱلَّذِي يُوجَدُ ٱلْيَوْمَ فِي ٱلْحَقْلِ وَيُطْرَحُ غَدًا فِي ٱلتَّنُّورِ يُلْبِسُهُ ٱللهُ هَكَذَا، فَكَمْ بِٱلْحَرِيِّ يُلْبِسُكُمْ أَنْتُمْ يَاقَلِيلِي ٱلْإِيمَانِ؟ | ٢٨ 28 |
पस जब ख़ुदा मैदान की घास को जो आज है कल तंदूर में झोंकी जाएगी, ऐसी पोशाक पहनाता है; तो ऐ कम ईमान वालो! तुम को क्यूँ न पहनाएगा?
فَلَا تَطْلُبُوا أَنْتُمْ مَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَشْرَبُونَ وَلَا تَقْلَقُوا، | ٢٩ 29 |
और तुम इसकी तलाश में न रहो कि क्या खाएँगे या क्या पीएँगे, और न शक्की बनो।
فَإِنَّ هَذِهِ كُلَّهَا تَطْلُبُهَا أُمَمُ ٱلْعَالَمِ. وَأَمَّا أَنْتُمْ فَأَبُوكُمْ يَعْلَمُ أَنَّكُمْ تَحْتَاجُونَ إِلَى هَذِهِ. | ٣٠ 30 |
क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में दुनिया की क़ौमें रहती हैं, लेकिन तुम्हारा आसमानी बाप जानता है कि तुम इन चीज़ों के मुहताज हो।
بَلِ ٱطْلُبُوا مَلَكُوتَ ٱللهِ، وَهَذِهِ كُلُّهَا تُزَادُ لَكُمْ. | ٣١ 31 |
हाँ, उसकी बादशाही की तलाश में रहो तो ये चीज़ें भी तुम्हें मिल जाएँगी।”
«لَا تَخَفْ، أَيُّهَا ٱلْقَطِيعُ ٱلصَّغِيرُ، لِأَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ سُرَّ أَنْ يُعْطِيَكُمُ ٱلْمَلَكُوتَ. | ٣٢ 32 |
“ऐ छोटे गल्ले, न डर; क्यूँकि तुम्हारे आसमानी बाप को पसन्द आया कि तुम्हें बादशाही दे।
بِيعُوا مَا لَكُمْ وَأَعْطُوا صَدَقَةً. اِعْمَلُوا لَكُمْ أَكْيَاسًا لَا تَفْنَى وَكَنْزًا لَا يَنْفَدُ فِي ٱلسَّمَاوَاتِ، حَيْثُ لَا يَقْرَبُ سَارِقٌ وَلَا يُبْلِي سُوسٌ، | ٣٣ 33 |
अपना माल अस्बाब बेचकर ख़ैरात कर दो, और अपने लिए ऐसे बटवे बनाओ जो पुराने नहीं होते; या'नि आसमान पर ऐसा ख़ज़ाना जो ख़ाली नहीं होता, जहाँ चोर नज़दीक नहीं जाता, और कीड़ा ख़राब नहीं करता।
لِأَنَّهُ حَيْثُ يَكُونُ كَنْزُكُمْ هُنَاكَ يَكُونُ قَلْبُكُمْ أَيْضًا. | ٣٤ 34 |
क्यूँकि जहाँ तुम्हारा ख़ज़ाना है, वहीं तुम्हारा दिल भी रहेगा।”
«لِتَكُنْ أَحْقَاؤُكُمْ مُمَنْطَقَةً وَسُرُجُكُمْ مُوقَدَةً، | ٣٥ 35 |
“तुम्हारी कमरें बँधी रहें और तुम्हारे चराग़ जलते रहें।
وَأَنْتُمْ مِثْلُ أُنَاسٍ يَنْتَظِرُونَ سَيِّدَهُمْ مَتَى يَرْجِعُ مِنَ ٱلْعُرْسِ، حَتَّى إِذَا جَاءَ وَقَرَعَ يَفْتَحُونَ لَهُ لِلْوَقْتِ. | ٣٦ 36 |
और तुम उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक की राह देखते हों कि वो शादी में से कब लौटेगा, ताकि जब वो आकर दरवाज़ा खटखटाए तो फ़ौरन उसके लिए खोल दें।
طُوبَى لِأُولَئِكَ ٱلْعَبِيدِ ٱلَّذِينَ إِذَا جَاءَ سَيِّدُهُمْ يَجِدُهُمْ سَاهِرِينَ. اَلْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ يَتَمَنْطَقُ وَيُتْكِئُهُمْ وَيَتَقَدَّمُ وَيَخْدُمُهُمْ. | ٣٧ 37 |
मुबारिक़ है वो नौकर जिनका मालिक आकर उन्हें जागता पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो कमर बाँध कर उन्हें खाना खाने को बिठाएगा, और पास आकर उनकी ख़िदमत करेगा।
وَإِنْ أَتَى فِي ٱلْهَزِيعِ ٱلثَّانِي أَوْ أَتَى فِي ٱلْهَزِيعِ ٱلثَّالِثِ وَوَجَدَهُمْ هَكَذَا، فَطُوبَى لِأُولَئِكَ ٱلْعَبِيدِ. | ٣٨ 38 |
अगर वो रात के दूसरे पहरमें या तीसरे पहरमें आकर उनको ऐसे हाल में पाए, तो वो नौकर मुबारिक़ हैं।
وَإِنَّمَا ٱعْلَمُوا هَذَا: أَنَّهُ لَوْ عَرَفَ رَبُّ ٱلْبَيْتِ فِي أَيَّةِ سَاعَةٍ يَأْتِي ٱلسَّارِقُ لَسَهِرَ، وَلَمْ يَدَعْ بَيْتَهُ يُنْقَبُ. | ٣٩ 39 |
लेकिन ये जान रखो कि अगर घर के मालिक को मा'लूम होता कि चोर किस घड़ी आएगा तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब लगने न देता।
فَكُونُوا أَنْتُمْ إِذًا مُسْتَعِدِّينَ، لِأَنَّهُ فِي سَاعَةٍ لَا تَظُنُّونَ يَأْتِي ٱبْنُ ٱلْإِنْسَانِ». | ٤٠ 40 |
तुम भी तैयार रहो; क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा, इब्न — ए — आदम आ जाएगा।“
فَقَالَ لَهُ بُطْرُسُ: «يَارَبُّ، أَلَنَا تَقُولُ هَذَا ٱلْمَثَلَ أَمْ لِلْجَمِيعِ أَيْضًا؟». | ٤١ 41 |
पतरस ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, तू ये मिसाल हम ही से कहता है या सबसे।”
فَقَالَ ٱلرَّبُّ: «فَمَنْ هُوَ ٱلْوَكِيلُ ٱلْأَمِينُ ٱلْحَكِيمُ ٱلَّذِي يُقِيمُهُ سَيِّدُهُ عَلَى خَدَمِهِ لِيُعْطِيَهُمُ ٱلْعُلُوفَةَ فِي حِينِهَا؟ | ٤٢ 42 |
ख़ुदावन्द ने कहा, “कौन है वो ईमानदार और 'अक़्लमन्द, जिसका मालिक उसे अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर करे हर एक की ख़ुराक वक़्त पर बाँट दिया करे।
طُوبَى لِذَلِكَ ٱلْعَبْدِ ٱلَّذِي إِذَا جَاءَ سَيِّدُهُ يَجِدُهُ يَفْعَلُ هَكَذَا! | ٤٣ 43 |
मुबारिक़ है वो नौकर जिसका मालिक आकर उसको ऐसा ही करते पाए।
بِٱلْحَقِّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ يُقِيمُهُ عَلَى جَمِيعِ أَمْوَالِهِ. | ٤٤ 44 |
मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वो उसे अपने सारे माल पर मुख़्तार कर देगा।
وَلَكِنْ إِنْ قَالَ ذَلِكَ ٱلْعَبْدُ فِي قَلْبِهِ: سَيِّدِي يُبْطِئُ قُدُومَهُ، فَيَبْتَدِئُ يَضْرِبُ ٱلْغِلْمَانَ وَٱلْجَوَارِيَ، وَيَأْكُلُ وَيَشْرَبُ وَيَسْكَرُ. | ٤٥ 45 |
लेकिन अगर वो नौकर अपने दिल में ये कहकर मेरे मालिक के आने में देर है, ग़ुलामों और लौंडियों को मारना और खा पी कर मतवाला होना शुरू' करे।
يَأْتِي سَيِّدُ ذَلِكَ ٱلْعَبْدِ فِي يَوْمٍ لَا يَنْتَظِرُهُ وَفِي سَاعَةٍ لَا يَعْرِفُهَا، فَيَقْطَعُهُ وَيَجْعَلُ نَصِيبَهُ مَعَ ٱلْخَائِنِينَ. | ٤٦ 46 |
तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन, कि वो उसकी राह न देखता हो, आ मौजूद होगा और ख़ूब कोड़े लगाकर उसे बेईमानों में शामिल करेगा।
وَأَمَّا ذَلِكَ ٱلْعَبْدُ ٱلَّذِي يَعْلَمُ إِرَادَةَ سَيِّدِهِ وَلَا يَسْتَعِدُّ وَلَا يَفْعَلُ بحَسَبِ إِرَادَتِهِ، فَيُضْرَبُ كَثِيرًا. | ٤٧ 47 |
और वो नौकर जिसने अपने मालिक की मर्ज़ी जान ली, और तैयारी न की और न उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ 'अमल किया, बहुत मार खाएगा।
وَلَكِنَّ ٱلَّذِي لَا يَعْلَمُ، وَيَفْعَلُ مَا يَسْتَحِقُّ ضَرَبَاتٍ، يُضْرَبُ قَلِيلًا. فَكُلُّ مَنْ أُعْطِيَ كَثِيرًا يُطْلَبُ مِنْهُ كَثِيرٌ، وَمَنْ يُودِعُونَهُ كَثِيرًا يُطَالِبُونَهُ بِأَكْثَرَ. | ٤٨ 48 |
मगर जिसने न जानकर मार खाने के काम किए वो थोड़ी मार खाएगा; और जिसे बहुत दिया गया उससे बहुत तलब किया जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया उससे ज़्यादा तलब करेंगे।”
«جِئْتُ لِأُلْقِيَ نَارًا عَلَى ٱلْأَرْضِ، فَمَاذَا أُرِيدُ لَوِ ٱضْطَرَمَتْ؟ | ٤٩ 49 |
“मैं ज़मीन पर आग भड़काने आया हूँ, और अगर लग चुकी होती तो मैं क्या ही ख़ुश होता।
وَلِي صِبْغَةٌ أَصْطَبِغُهَا، وَكَيْفَ أَنْحَصِرُ حَتَّى تُكْمَلَ؟ | ٥٠ 50 |
लेकिन मुझे एक बपतिस्मा लेना है, और जब तक वो हो न ले मैं बहुत ही तंग रहूँगा।
أَتَظُنُّونَ أَنِّي جِئْتُ لِأُعْطِيَ سَلَامًا عَلَى ٱلْأَرْضِ؟ كَلاَّ، أَقُولُ لَكُمْ: بَلِ ٱنْقِسَامًا. | ٥١ 51 |
क्या तुम गुमान करते हो कि मैं ज़मीन पर सुलह कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं, बल्कि जुदाई कराने।
لِأَنَّهُ يَكُونُ مِنَ ٱلْآنَ خَمْسَةٌ فِي بَيْتٍ وَاحِدٍ مُنْقَسِمِينَ: ثَلَاثَةٌ عَلَى ٱثْنَيْنِ، وَٱثْنَانِ عَلَى ثَلَاثَةٍ. | ٥٢ 52 |
क्यूँकि अब से एक घर के पाँच आदमी आपस में दुश्मनी रख्खेंगे, दो से तीन और तीन से दो।
يَنْقَسِمُ ٱلْأَبُ عَلَى ٱلِٱبْنِ، وَٱلِٱبْنُ عَلَى ٱلْأَبِ، وَٱلْأُمُّ عَلَى ٱلْبِنْتِ، وَٱلْبِنْتُ عَلَى ٱلْأُمِّ، وَٱلْحَمَاةُ عَلَى كَنَّتِهَا، وَٱلْكَنَّةُ عَلَى حَمَاتِهَا». | ٥٣ 53 |
बाप बेटे से दुश्मनी रख्खेगा और बेटा बाप से, सास बहु से और बहु सास से।“
ثُمَّ قَالَ أَيْضًا لِلْجُمُوعِ: «إِذَا رَأَيْتُمُ ٱلسَّحَابَ تَطْلُعُ مِنَ ٱلْمَغَارِبِ فَلِلْوَقْتِ تَقُولُونَ: إِنَّهُ يَأْتِي مَطَرٌ، فَيَكُونُ هَكَذَا. | ٥٤ 54 |
फिर उसने लोगों से भी कहा, “जब बादल को पच्छिम से उठते देखते हो तो फ़ौरन कहते हो कि पानी बरसेगा, और ऐसा ही होता है;
وَإِذَا رَأَيْتُمْ رِيحَ ٱلْجَنُوبِ تَهُبُّ تَقُولُونَ: إِنَّهُ سَيَكُونُ حَرٌّ، فَيَكُونُ. | ٥٥ 55 |
और जब तुम मा'लूम करते हो कि दक्खिना चल रही है तो कहते हो कि लू चलेगी, और ऐसा ही होता है।
يَا مُرَاؤُونَ! تَعْرِفُونَ أَنْ تُمَيِّزُوا وَجْهَ ٱلْأَرْضِ وَٱلسَّمَاءِ، وَأَمَّا هَذَا ٱلزَّمَانُ فَكَيْفَ لَا تُمَيِّزُونَهُ؟ | ٥٦ 56 |
ऐ रियाकारो! ज़मीन और आसमान की सूरत में फ़र्क़ करना तुम्हें आता है, लेकिन इस ज़माने के बारे में फ़र्क़ करना क्यूँ नहीं आता?”
وَلِمَاذَا لَا تَحْكُمُونَ بِٱلْحَقِّ مِنْ قِبَلِ نُفُوسِكُمْ؟ | ٥٧ 57 |
“और तुम अपने आप ही क्यूँ फ़ैसला नहीं कर लेते कि ठीक क्या है?
حِينَمَا تَذْهَبُ مَعَ خَصْمِكَ إِلَى ٱلْحَاكِمِ، ٱبْذُلِ ٱلْجَهْدَ وَأَنْتَ فِي ٱلطَّرِيقِ لِتَتَخَلَّصَ مِنْهُ، لِئَلَّا يَجُرَّكَ إِلَى ٱلْقَاضِي، وَيُسَلِّمَكَ ٱلْقَاضِي إِلَى ٱلْحَاكِمِ، فَيُلْقِيَكَ ٱلْحَاكِمُ فِي ٱلسِّجْنِ. | ٥٨ 58 |
जब तू अपने दुश्मन के साथ हाकिम के पास जा रहा है तो रास्ते में कोशीश करके उससे छूट जाए, ऐसा न हो कि वो तुझको फ़ैसला करने वाले के पास खींच ले जाए, और फ़ैसला करने वाला तुझे सिपाही के हवाले करे और सिपाही तुझे क़ैद में डाले।
أَقُولُ لَكَ: لَا تَخْرُجُ مِنْ هُنَاكَ حَتَّى تُوفِيَ ٱلْفَلْسَ ٱلْأَخِيرَ». | ٥٩ 59 |
मैं तुझ से कहता हूँ कि जब तक तू दमड़ी — दमड़ी अदा न कर देगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा।“